बिहार के पर्व और त्यौहार
बिहार के पर्व और त्यौहार
बिहार सांस्कृतिक रूप से बहुत ही समृद्ध प्रदेश है । यहाँ के सभी पर्व और त्यौहार संस्कृति के प्रतीक और बड़े ही रंग - बिरंगे हैं । वैसे तो बिहार के प्रत्येक महीने में कम से कम तीन से चार पर्व या त्यौहार होते हैं । बिहारी जहाँ भी जाता है अपनी पहचान साथ लेकर जाता है । आज पुरे विश्व में बिहारी फैले हुए हैं । बिहार का प्रमुख पर्व छठ पूजा और सरस्वती पूजा (वसंत पंचमी आज पुरे देश के साथ साथ विदेशों में भी मनाया जा रहा है रहा है । उनमे से कुछ प्रमुख के बारे में बताता हूँ ।
मकर संक्रान्ति - इस पर्व को धान की नई फसल का पर्व कहा जाता है। प्रायः चौदह अथवा पन्द्रह जनवरी को यह पर्व मनाया जाता है। इसी दिन लोग नदी अथवा तालाब में स्नान कर दही और चूड़ा एवं तिलकूट खाते हैं। तिल संक्रान्ति के बाद में लोग खिचड़ी खाते हैं। पश्चिम बंगाल में इस दिन गंगासागर में मेला लगता है।
बसन्त पंचमी/सरस्वती - पूजा-विद्या की देवी सरस्वती का यह पर्व माघ शुक्ल पंचमी के दिन धूमधाम से मनाया जाता है। सरस्वती पूजा के तीन दिन बाद उसकी मूर्तियों को नदी या तालाब में वसर्जित कर दी जाती है।
रामनवमी - भगवान पुरुषोत्तम राम के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाने वाले पर्व है। यह पर्व चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। इन्हीं राम के भक्त हनुमान की पूजा की जाती है। मन्दिर, आँगन एवं पवित्र स्थानो पर झण्डा लगाते हैं। राम नवमी के शुभ अवसर पर जुलुस निकाला जाता है।
शिवरात्रि - शिव एवं पार्वती के विवाह का यह पर्व फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है। महिलाएँ इस दिन व्रत को रखती हैं और शिव मन्दिर में जाकर शिव पूजन करती हैं।
होली - रंग गुलाल का पर्व होली फाल्गुन पूर्णिमा यानि चैत्र के पहले दिन धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन से नववर्ष का आगमन हो जाता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इसी दिन होलिका का दहन भी किया जाता है।
रक्षाबन्धन - यह भाई-बहन का त्यौहार है। भाई-बहनों का यह पर्व श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहने भाईयों को कलाई में राखी बाँधती हैं। भाई-बहनों को रक्षा का वचन देते हैं। इस दिन खीर, सेवई, घेवर लड्डू आदि खाते हैं। ब्राह्मण लोग भी अपने यजमानो के हाथों में राखी बाँधते हैं।
कृष्णाजन्माष्टमी - भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह त्यौहार भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है। इसी दिन आधी रात को भगवान श्रीकृष्ण मथुरा में पैदा हुए थे।
तीज - यह बिहार का प्रमुख पर्व है जो विवाहिता स्त्रियों के लिए होता है जिनके पति जीवित हों। इस दिन महिलाएँ उपवास रखती हैं, पार्वती की पूजा करती हैं तथा अपने पति के दीर्घ जीवन की कामना करती हैं।
जिऊतिया - यह सन्तावती महिलाएँ अपने बच्चों के दीर्घ जीवन एवं सुख-समृद्धि के लिए मनाते हैं। इस पर्व को आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।]
विश्वकर्मा पूजा - यह लोहे (यन्त्र) का काम करने वालों का पर्व है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है।
पीडिया - लड़कियों का पर्व है जो गोवर्धन पूजा के दिन प्रारम्भ होकर एक माह तक चलता है।
दीपावली - यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को हिन्दू और जैनियों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। यह रोशनी एवं आतिशबाजी का पर्व है। हिन्दू लोग राम की रावण पर विजय के उपरान्त अयोध्या आगमन के रुप में मानते हैं, जबकि जैनी लोग अपने २४वें तीर्थंकर श्री महावीर की निर्माण दिवस के रुप में मनाते हैं।
वैश्य एवं व्यापारी लोग इसी दिन से नए खाते बही को बदलते हैं। नए बर्तन को खरीदते हैं। लक्ष्मी एवं गणेश की पूजा की जाती है। घरों में पकवान एवं मिठाई बनती हैं। नए वस्त्र को पहनकर आतिशबाजी व पटाखे छुड़ाते हैं तथा रात्रि में दीपक जलाते हैं।
गोवर्धन - दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रथमा को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन मन्दिरों में अन्नकूट की पूड़ी व सब्जी तैयार होती है। इसी दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है। पशु क्रीडा एवं कुश्ती का आयोजन किया जाता है।
देवोत्थान - यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। बिहार के लोग सांयकाल के समय गन्ना, गुड़, शकरकन्द आदि से भगवान की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन देव और भगवान विष्णु चार मास के शयन के पश्चात् उठते हैं।
छठ-पूजा -
श्रद्धा एवं पवित्रता का पर्व छठ बिहार का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रीय पर्व है। यह कार्तिक और चैत्र दोनों माह में षष्ठी को मनाया जाता है। इस पर्व में अस्त होते एवं उदय होते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है।
महालया - यह आश्विन के कृष्ण पक्ष को पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के रुप में १५ दिनों तक मनाया जाता है। हिन्दू अपने पितरों को श्राद्ध और तर्पण करते हैं तथा अपने पितरों का पिण्डदान करते हैं।
दशहरा - बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दशहरा पूरे बिहार में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष में पहली से दशमी तिथि तक मनाया जाता है। इस दौरान माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है।
दवात पूजा-यह पर्व कायस्थ लोगों द्वारा विशेष रुप से मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है।
भातृ-द्वितीया - इस त्यौहार को भैया दूज भी कहा जाता है। इस त्यौहार को लड़कियाँ और महिलाएँ अपने भाइयों को सुख-समृद्धि के लिए कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाती हैं। बहन को भाई के प्रति स्नेह और श्रद्धा का भाव दिखने को मिलता है।
अनन्त-चतुर्दशी - यह पर्व भादों मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का आयोजन होता है। लोग अनन्त देवता को प्रतीक के रुप में अपनी बाँह में अनन्त डोरा बाँधता हैं।
गण गौरी पर्व-यह पर्व बिहार में रहने वाले राजस्थानी लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रुप से स्त्रियों द्वारा मनाया जाता है। जिसमें गौरी की पूजा की जाती है तथा गौरी की शोभा यात्रा निकाली जाती है।]
मधु-श्रावणी - यह पर्व मिथिलांचल में नवयुवतियो द्वारा विशेष रुप से मनाया जाता है। इसका आरम्भ नागपंचमी से शुरु होता है। लोग घरों को सजाने-संवारने का काम वृहद पैमाने पर करते हैं।
सतुआन - यह पर्व मेघ संक्रान्ति के रुप में मनाया जाता है। यह चना फसल कटने के बाद मनाया जाता है।
चौका चन्दा-यह भादों मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह मुख्यतः प्राथमिक छात्राओं का पर्व है।]
बट -सावित्री - यह मिथिलांचल की महिलाएँ जेठ माह की अमावस्या को मनाती हैं।
डोरा - होली पर्व मनाने के बाद हर रविवार (एक माह तक) मिथिलांचल की महिलाएँ मनाती हैं। इस दिन वह सन्तोषी माँ की पवित्र कहानी कहती हैं और अपनी बाँह में डोरा भी बाँधती हैं।
इन्द्र-पूजा - यह पर्व बिहार में भादों माह के शुक्ल पक्ष एकादशी से आश्विन कृष्ण पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इसमें ९ दिनों तक भगवान इन्द्र की पूजा की जाती है। अन्तिम दिन वसुन्धरा को विसर्जन कर दी जाती है।
गुरुगोविन्द सिंह जन्म-दिवस - सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह के जन्म दिवस जन्म स्थली पटना के हरमन्दिर में मनाया जाता है। हरमन्दिर में पौष शुक्ल सप्तमी को विशाल समारोह का भव्य आयोजन किया जाता है।]
महावीर जयन्ती - यह जैनी लोग अन्त्तिम प्रवर्तक भगवान महावीर के जन्म दिवस के रुप में मानते हैं। इनका बिहार में चैत्र शुक्ल पक्ष त्रियोदशी में जन्म हुआ था।
बुद्ध जयन्ती - वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयन्ती पर्व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
अक्षय तृतीया/अक्षय नवमी - अक्षय तृतीया वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन सार्वजनिक रुप से शर्बत पीते और पिलाते हैं। जबकि अक्षय नवमी मिथिलांचल तथा भोजपुरी में कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को मनाया जाता है। इसी दिन महिलाएँ शाम के ऑवला के नीचे सामूहिक रुप से खाना खाती हैं।
कोजगरा - यह पर्व मिथिलांचल में आश्विन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें सिर्फ ब्राह्मण समुदाय ही लक्ष्मी व गणेश की पूजा करते हैं। यह पर्व नव-विवाहित वरों के लिए खास महत्वपूर्
कॉवर - यह एक पर्वनुमा यात्रा है जिसमें श्रावण भर पूरे बिहार में यात्रा होती है। लोग गेरुआ वस्त्र धारण कर कन्धे पर कॉवर लेकर नंगे पाँव सुल्तानगंज से जाते हैं 35 किमी. की दूरी की पदयात्रा कर वैद्यनाथ मन्दिर में जल का अर्ध्य भगवान शिव के ऊपर चढ़ाते हैं।
सरहूल - यह आदिवासियों के द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है। कृषि कार्य प्रारम्भ होने पर मनाया जाता है। सरना में पूजा की जाती है।
ईद - यह मुसलमानों का विशेष त्यौहार है जो रमजान के महीने में उपवास की समाप्ति के तदोपरान्त मनाया जाता है। इसके माध्यम से श्रद्धालु मुसलमान उपवास के सफल समापन होने पर धन्यवाद या बधाईयाँ देते हैं। और फिना (दान) भी करते हैं। इसे ईद उल फितर भी कहा जाता है।
बकरीद - इसे ईद उल जुहा कहा जाता है। इस्लामी पंचांग के अनुसार आखरी महीना में मनाया जाता है। इसी दिन पैगम्बर इब्राहिम धर्म पुरुष का बलिदान हुआ था। मुसलमान पशुओं का वध करते हैं तथा इसी दिन तीर्थोत्व हज्ज भी सम्पन्न होता है।
मुहर्रम - मुसलमानी पंचांग के अनुसार यह प्रथम माह में होता है। महीने के १०वीं तारीख को हजरत इमाम हुसैन के शहीद को याद किया जाता है। यह शोक के रुप में शिया मुसलमानों द्वारा मनाया जाता है।
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