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Showing posts from January, 2023

विद्यापति गीत

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    विद्यापति गीत  जय-जय भै‍रवि असुर भयाउनि पशुपति भामिनी माया सहज सुमति वर दियउ गोसाउनि अनुगति गति तुअ पाया वासर रैनि सबासन शोभित चरण चन्‍द्रमणि चूड़ा कतओक दैत्‍य मारि मुख मेलल कतओ उगिलि कएल कूड़ा सामर बरन नयन अनुरंजित जलद जोग फुलकोका कट-कट विकट ओठ पुट पांडरि लिधुर फेन उठ फोंका घन-घन-घनय घुंघरू कत बाजय हन-हन कर तुअ काता विद्यापति कवि तुअ पद सेवक पुत्र बिसरू जनि माता I  ------------------------------ महाकवि                 विद्यापति  -    महाकवि विद्यापति का जन्म  मधुबनी जिला के विस्फी गांव में गणपति ठाकुर के पुत्र रूप में   हुआ था।   जिसे मैथिल कवि कोकिल  के नाम से भी जाना जाता है, एक मैथिली और संस्कृत कवि, संगीतकार, लेखक, दरबारी और शाही पुजारी थे। वह शिव के भक्त थे, लेकिन उन्होंने प्रेम गीत और भक्ति वैष्णव गीत भी लिखे। वे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और मैथिली जानते थे। [ विद्यापति का प्रभाव केवल मैथिली और संस्कृत साहित्य तक ही सीमित नहीं था बल्कि अन्य पूर्वी भारतीय साहित्यिक परंपराओं तक भी था।  विद्यापति के समय की भाषा, प्राकृत-व्युत्पन्न स्वर्गीय अबहत्था, पूर्वी भाषाओं जैसे मैथिली और

बटोहिया गीत

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  बटोहिया गीत       रघुवीर  नारायण  नारायण सिंह  सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्राण बसे हिम-खोह रे बटोहिया |  एक द्वार घेरे रामा हिम-कोतवलवा से तीन द्वार सिंधु घहरावे रे बटोहिया   || जाहु-जाहु भैया रे बटोही हिंद देखी आउ जहवां कुहुंकी कोइली बोले रे बटोहिया |  पवन सुगंध मंद अगर चंदनवां से कामिनी बिरह-राग गावे रे बटोहिया || बिपिन अगम घन सघन बगन बीच चंपक कुसुम रंग देबे रे बटोहिया  |  द्रुम बट पीपल कदंब नींब आम वॄ‌छ केतकी गुलाब फूल फूले रे बटोहिया  || तोता तुती बोले रामा बोले भेंगरजवा से पपिहा के पी-पी जिया साले रे बटोहिया |  सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्रान बसे गंगा धार रे बटोहिया || गंगा रे जमुनवा के झिलमिल पनियां से सरजू झमकी लहरावे रे बटोहिया |  ब्रह्मपुत्र पंचनद घहरत निसि दिन सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे बटोहिया || उपर अनेक नदी उमड़ी घूमड़ी नाचे जुगन के जदुआ जगावे रे बटोहिया |  आगरा प्रयाग काशी दिल्ली कलकतवा से मोरे प्रान बसे सरजू तीर रे बटोहिया  || जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखी आउ जहां ऋषि चारो बेद गावे रे बटोहिया |  सीता के बीमल जस राम जस कॄष्ण जस मोरे बाप-दादा

लोक-गीत और गायक

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  लोक-गीत और  गायक  बिहार में लोक गीतों की भरमार है।  यहाँ पर  जन्म  के  सोहार गया जाता है।  इसी तरह  हर मौके पर कोई न कोई गीत गया जाता है । सुबह सुबह पराती , शाम के समय साँझती  आदि आदि।     संस्कार गीत-बालक-बालिकाओं के जन्मोत्सव, मुण्डन, पूजन, जनेउ तथा विवाह, आदि पर गाये जाने वाले संस्कार गीत हैं-सोहर, कोहबर, समुझ बनी, आदि। इसके अलावा प्रेम गीत , विरह गीत।   फाग , चैता  धान रोपनी गीत , धान काटने का गीत आदि।   विभिन्न ऋतुओं में गाये जाने वाले ऋतुगीतों में प्रमुख हैं-कजरी अथवा कजली, चतुमार्सा, बारहामासा  आदि।   इस सभी गीतों के प्रकार हैं जिन्हें अलग अलग श्रेणी में रखा गया है।  लोरिकायन  - वीर रस से परिपूर्ण इस लोकगीत में नायक लोरिक के जीवन-प्रसंगों का जिस भाव से वर्णन करता है, वह देखते-सुनते ही बनता है। नयका बंजारा-   सम्पूर्ण राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में गाये जाने वाले लोक गीतों में प्रायः विषय-वस्तु तो एक ही होती है, किन्तु स्थान, पात्र तथा चरित्रों में विविघता के  दर्शन  होते हैं।   विजमैल  -  राजा विजयमल की वीरता का बखान करने वाले इन लोकगीतों में बढ़ा-चढ़ाकर प्रचलित गाथा का वर्णन

बिहार के लोक नाट्य

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  बिहार  के  लोक नाट्य      बिहार प्राचीन  काल  से ही अपनी कला संस्कृति के लिए प्रसिद्ध रहा है । बिहार   के सांस्कृतिक तथा लोक-जीवन में ‘लोक नाट्यों’ का एक अपना अलग ही महत्व है।  लोकनाट्य का आयोजन  मांगलिक अवसरों कभी-कभी मो मात्र मनोरंजन की दृिष्ट से किये   जाते हैं। इन लोक नाट्यों में कथानक, संवाद, अभिनय, गीत, नृत्य तथा विशेष दृश्य, आदि सभी कुछ होता है । वैसे तो बिहार में  बहुत से  लोक नाट्य चलन में है। उनमे से कुछ के बारे में बताता हूँ ।       बिदेसिया  :  इस लोक नाट्य में भोजपुर क्षेत्र के अत्यन्त  लोकप्रिय  ‘लौंडा नाच’ के साथ ही आल्हा, पचड़ा, बारहमासा, पूरबी गोंड, नेटुआ, पंवडिया आदि  आदि का मिश्रण होता  है। नाटक का प्रारम्भ मंगलाचरण से होता है। नाटक में महिला पात्रों की भूमिका भी पुरूष कलाकारों द्वारा की जाती है। पात्र भूमिका भी निभाते हैं और पृष्ठभूमि में गायन-वादन  भी कार्य करते हैं।     जट-जाटिन : प्रत्येक र्वष सावन से लेकर कार्तिक तक की पूणिर्मा अथवा उसके एक-दो दिन पूर्व पश्चात् मात्र अविवाहिताओं द्वारा अभिनीत इस लोकनाट्य में जट-जाटिन के वैवाहिक जीवन को प्रदर्शित किया जाता है।

बिहार के पर्व और त्यौहार

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  बिहार के पर्व और त्यौहार  बिहार   सांस्कृतिक रूप से बहुत ही समृद्ध प्रदेश  है ।  यहाँ के सभी पर्व और त्यौहार  संस्कृति के प्रतीक  और बड़े ही रंग - बिरंगे हैं ।  वैसे तो बिहार के प्रत्येक महीने में कम से कम  तीन से चार पर्व या त्यौहार होते हैं ।  बिहारी  जहाँ भी जाता है अपनी पहचान साथ लेकर जाता है ।  आज पुरे विश्व में बिहारी फैले हुए हैं ।  बिहार का प्रमुख  पर्व  छठ पूजा और सरस्वती पूजा (वसंत पंचमी आज पुरे देश के साथ साथ विदेशों में भी मनाया  जा रहा है रहा है ।   उनमे से कुछ प्रमुख के बारे में  बताता हूँ ।     मकर संक्रान्ति  - इस  पर्व  को धान की नई फसल का  पर्व  कहा जाता है। प्रायः चौदह अथवा पन्द्रह जनवरी को यह  पर्व  मनाया जाता है। इसी दिन लोग नदी अथवा तालाब में स्नान कर दही और चूड़ा एवं तिलकूट खाते हैं। तिल संक्रान्ति के बाद में लोग खिचड़ी खाते हैं। पश्‍चिम बंगाल में इस दिन गंगासागर में मेला लगता है।   बसन्त पंचमी/सरस्वती   -  पूजा-विद्या की देवी सरस्वती का यह  पर्व  माघ शुक्‍ल पंचमी के दिन धूमधाम से मनाया जाता है। सरस्वती पूजा के तीन दिन बाद उसकी मूर्तियों को नदी या तालाब में वसर्

बिहार की भाषाएँ एवं बोलियां

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  बिहार की भाषाएँ एवं  बोलियां        बिहार की राजभाषा हिन्दी तथा द्वितीय राजभाषा उर्दू है। बिहार में बोली जाने वाली भाषाओं और बोलियों में भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका, और वज्जिका, प्रमुख हैं।         भोजपुरी   :-  यह भाषा बिहार के मुख्यतः सिवान , छपरा , गोपालगंज रोहतास, भोजपुर, बक्‍सर, कैमूर, और पश्‍चिमी चम्पारण में बोली जाती है। बिहार में भोजपुरी बोलने वालों की संख्या सर्वाधिक है । बिहार के अलावा भोजपुरी पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों एवं विश्व के कई देशों में भी बोली जाती है।   मैथिली  :- मैथिली भाषा दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, मधेपुरा, सहरसा, सीतामढ़ी व पूर्णिया जिलों में बोली जाती हैं। लिग्‍इवंस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया के अनुसार मैथि ली भाषा को बोलने वालों की संख्या 1 करोड़ है। मैथिलि भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है। कवि कोकिल विद्यापति इस भाषा के सर्वोपरि कवि हैं।   मगही  :-  यह भाषा गया, पटना, जहानाबाद, नवादा, मुंगेर, हजारीबाग और पलामू जिलों में बोली जाती है। लेकिन पटना और गया जिले में सबसे अधिक बोली जाती है। मगही बोलने वालों की जनसंख्याकरीब ८५ लाख है।     अंगिका  :- अं

बिहार राज्य ‘राज्य प्रार्थना’ I

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  बिहार राज्य  ‘राज्य प्रार्थना’   बिहार राज्य की स्थापना के 100 वर्ष  पूर्ण होने के  अवसर पर  21 मार्च 2012 को बिहार के  तत्कालीन  मुख्यमंत्री   नीतीश कुमार  ने बिहार के मंत्री परिषद से स्वीकृत बिहार राज्य के लिए  ‘राज्य गीत’  एवं ‘राज्य प्रार्थना’ का लोकार्पण किया । इस गीत में बिहार के  गौरवशाली इतिहास के साथ साथ बिहार के सभी महत्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन किया गया है।       बिहार राज्य  ‘राज्य प्रार्थना’                           --------------------------------------------------------------------       मेरी रफ्तार पे सूरज की किरण नाज करे ऐसी परवाज दे मालिक कि गगन नाज करे  वो नजर दे कि करुँ कद्र हरेक मजहब की वो खुशबू से महक जाये ये दुनिया मालिक मुक्षको वो फूल बना सारा चमन नाज करे इल्म कुछ ऐसा दे मैं काम सबों के आऊँ हौसला ऐसा ही दे गंग – जमन नाज करे आधे रास्ते पे न रुक जाये मुसाफिर के कदम शौक मंजिल का हो इतना कि थकन नाज करे दीप से दीप जलायें कि चमक उठे बिहार ऐसी खूबी दे ऐ मालिक कि वतन नाज करे जय बिहार जय बिहार जय जय जय जय बिहार    मशहूर संगीतज्ञ शिव कुमार शर्मा एवं हरि प्रसाद चौरसिया ने