लोक-गीत और गायक

 लोक-गीत और  गायक 



बिहार में लोक गीतों की भरमार है।  यहाँ पर  जन्म  के  सोहार गया जाता है।  इसी तरह  हर मौके पर कोई न कोई गीत गया जाता है । सुबह सुबह पराती , शाम के समय साँझती  आदि आदि।   संस्कार गीत-बालक-बालिकाओं के जन्मोत्सव, मुण्डन, पूजन, जनेउ तथा विवाह, आदि पर गाये जाने वाले संस्कार गीत हैं-सोहर, कोहबर, समुझ बनी, आदि। इसके अलावा प्रेम गीत , विरह गीत।   फाग , चैता  धान रोपनी गीत , धान काटने का गीत आदि। विभिन्न ऋतुओं में गाये जाने वाले ऋतुगीतों में प्रमुख हैं-कजरी अथवा कजली, चतुमार्सा, बारहामासा  आदि।  इस सभी गीतों के प्रकार हैं जिन्हें अलग अलग श्रेणी में रखा गया है। 















लोरिकायन - वीर रस से परिपूर्ण इस लोकगीत में नायक लोरिक के जीवन-प्रसंगों का जिस भाव से वर्णन करता है, वह देखते-सुनते ही बनता है।

नयका बंजारा-  सम्पूर्ण राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में गाये जाने वाले लोक गीतों में प्रायः विषय-वस्तु तो एक ही होती है, किन्तु स्थान, पात्र तथा चरित्रों में विविघता के  दर्शन  होते हैं।

 विजमैल -  राजा विजयमल की वीरता का बखान करने वाले इन लोकगीतों में बढ़ा-चढ़ाकर प्रचलित गाथा का वर्णन किया जाता है।

 सलहेस -  लोककथा के अनुसार, सलहेस, दौना नामक एक मालिन का प्रेमी था। उसके एक शत्रु ने ईष्या वश  सलहेस को चोरी के झूठे आरोप में बन्द बनवा दिया। दौना मालिन ने अपने प्रेमी सलहेस को किस प्रकार मुक्त कराया। बस इसी प्रकरण को इस लोक-गीत में भाव-विभोर होकर गया जाता है।

दीना भदरी -   इस लोक-गीत में दीना तथा भदरी नामक दो भाइयों के वीरता का वर्णन मार्मिकता से गाया जाता है।इसके साथ ही राज्य के विभिन्न अंचलों में आल्हा-उफदल, राजा ढोलन सिंह, छतरी चौहान, नूनाचार, लुकसरी देवी, कालिदास, मनसाराम, छेछनमल, लाल महाराज, गरबी दयाल सिंह, मीरायन, हिरनी-बिरनी, कुंअर बृजभार, राजा विक्रमादित्य, बिहुला, गोपीचन्द, अमर सिंह, बरिया, राजा हरिश्चन्द्र, कारू खिर हैर, मैनावती आदि के जीवन एवं उनकी वीरता भरी गाथाओं को राज्य के गाथा-गीतों के रूप में गाया जाता है।

पर्व-गीत-   राज्य में विशेष पर्व एवं त्यौहार  पर गाये जाने वाले मांगलिक-गीतों को ‘पर्वगीत’ कहा जाता है। होली, दीपावली, छठ, तीज, जिउतिया, बहुरा, पीडि़या, गो-घन, रामनवमी, जन्माष्टमी, तथा अन्य शुभअवसरों पर गाये जाने वाले गीतों में प्रमुखतः शब्द, लय एवं गीतों में  भारी समानता होती है।


ऋतु-गीत - विभिन्न ऋतुओं में गाये जाने वाले ऋतुगीतों में प्रमुख हैं-कजरी अथवा कजली, चतुमार्सा, बारहामासा, चइता तथा हिंडोला, आदि।


पेशा-गीत - राज्य में विभिन्न पेशे के लोग अपना कार्य करते समय जो गीत गाते जाते हैं उन्हें ‘पेशा गीत’ कहते हैं। उदाहरणाथर्-गेहूं पीसते समय ‘जाता-पिसाई’, छत की ढलाई करते समय ‘थपाई’ तथा छप्पर छाते समय ‘छवाई’ और इनके साथ ही विभिन्न व्यावसायिक कार्य करते समय ‘सोहनी, ‘रोपनी’, आदि गीत गाते-गाते कार्य करते रहने का प्रचलन है।।उक्त लोक गीतों के साथ ही बिहार में समय-समय पर और विशेषकार संघयाकाल समय भोजनोपरान्त सांझापराती, झूमर, बिरहा, प्रभाती, निगुर्ण, देवी-देवताओं के गीत गाने का प्रचलन है


 राज्य के प्रमुख लोक गायक 





    -   शारदा सिन्हा ,  डॉ. शंकर प्रसाद, मोतीलाल ‘मंजुल’, विंघयवासिनी देवी, नन्द किशोर प्रसाद, कमला देवी, केसरी नन्दन भगत, कुमुद अखौरी, ग्रेस कुजूर, विष्णु प्रसाद सिन्हा, ब्रज किशोर दुबे, भरत सिंह भारती, संतराज सिंह ‘रागेश’, योगेन्द्र सिंह अलबेला, अजित कुमार अकेला, भरत शर्मा व्यास ,  मनोज तिवारी  , पवन सिंह  , खेसारी लाल यादव , शम्भूराम, कविता चौघरी, उमाकान्त कमल, ललिका झा, उर्वशी, रेणुका सहाय  के अलावा अन्य कई पमुख लोक गायक  हैं।


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