विद्यापति गीत
विद्यापति गीत
जय-जय भैरवि असुर भयाउनि
पशुपति भामिनी माया
सहज सुमति वर दियउ गोसाउनि
अनुगति गति तुअ पाया
वासर रैनि सबासन शोभित
चरण चन्द्रमणि चूड़ा
कतओक दैत्य मारि मुख मेलल
कतओ उगिलि कएल कूड़ा
सामर बरन नयन अनुरंजित
जलद जोग फुलकोका
कट-कट विकट ओठ पुट पांडरि
लिधुर फेन उठ फोंका
घन-घन-घनय घुंघरू कत बाजय
हन-हन कर तुअ काता
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक
पुत्र बिसरू जनि माता I
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महाकवि विद्यापति -
महाकवि विद्यापति का जन्म
मधुबनी जिला के विस्फी गांव में गणपति ठाकुर के पुत्र रूप में हुआ था।
जिसे मैथिल कवि कोकिल के नाम से भी जाना जाता है, एक मैथिली और संस्कृत कवि, संगीतकार, लेखक, दरबारी और शाही पुजारी थे। वह शिव के भक्त थे, लेकिन उन्होंने प्रेम गीत और भक्ति वैष्णव गीत भी लिखे। वे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और मैथिली जानते थे। [
विद्यापति का प्रभाव केवल मैथिली और संस्कृत साहित्य तक ही सीमित नहीं था बल्कि अन्य पूर्वी भारतीय साहित्यिक परंपराओं तक भी था। विद्यापति के समय की भाषा, प्राकृत-व्युत्पन्न स्वर्गीय अबहत्था, पूर्वी भाषाओं जैसे मैथिली और भोजपुरी के शुरुआती संस्करणों में परिवर्तित होना शुरू हो गई थी। इस प्रकार, इन भाषाओं को बनाने पर विद्यापति के प्रभाव को "इटली में दांते के अनुरूप और इंग्लैंड में चेस" के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें "बंगाली साहित्य का जनक" कहा गया है।
कहा जाता है कि महाकवि को जब लगा कि उनका अंतिम समय निकट आ रहा है तो उन्होंने गंगा तट ले जाने की इच्छा जतायी। पालकी से इन्हें गंगा तट ले जाया जा रहा था जब गंगाजी दो कोस दूर रही तो इन्होंने पालकी रखवा दिया और कहा कि जब पुत्र इतनी दूर से यहां तक पहुंच गया तो क्या मां क्या दो कोस नहीं आ सकती। कुछ ही देर में गंगा की धारा इनके निकट पहुंच गयी। गंगा तट पर इन्होंने बड़ सुख पाओल तुअ तट तीरे, छोड़इत निकट नयन बह नीरे.. की रचना की।
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