बटोहिया गीत

 बटोहिया गीत   

 






रघुवीर नारायण नारायण सिंह 















सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्राण बसे हिम-खोह रे बटोहिया | 

एक द्वार घेरे रामा हिम-कोतवलवा से तीन द्वार सिंधु घहरावे रे बटोहिया   ||

जाहु-जाहु भैया रे बटोही हिंद देखी आउ जहवां कुहुंकी कोइली बोले रे बटोहिया | 

पवन सुगंध मंद अगर चंदनवां से कामिनी बिरह-राग गावे रे बटोहिया ||

बिपिन अगम घन सघन बगन बीच चंपक कुसुम रंग देबे रे बटोहिया  | 

द्रुम बट पीपल कदंब नींब आम वॄ‌छ केतकी गुलाब फूल फूले रे बटोहिया  ||

तोता तुती बोले रामा बोले भेंगरजवा से पपिहा के पी-पी जिया साले रे बटोहिया | 

सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्रान बसे गंगा धार रे बटोहिया ||

गंगा रे जमुनवा के झिलमिल पनियां से सरजू झमकी लहरावे रे बटोहिया | 

ब्रह्मपुत्र पंचनद घहरत निसि दिन सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे बटोहिया ||

उपर अनेक नदी उमड़ी घूमड़ी नाचे जुगन के जदुआ जगावे रे बटोहिया | 

आगरा प्रयाग काशी दिल्ली कलकतवा से मोरे प्रान बसे सरजू तीर रे बटोहिया  ||

जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखी आउ जहां ऋषि चारो बेद गावे रे बटोहिया | 

सीता के बीमल जस राम जस कॄष्ण जस मोरे बाप-दादा के कहानी रे बटोहिया ||

ब्यास बालमीक ऋषि गौतम कपिलदेव सूतल अमर के जगावे रे बटोहिया| 

रामानुज-रामानंद न्यारी-प्यारी रूपकला ब्रह्म सुख बन के भंवर रे बटोहिया  ||

नानक कबीर गौर संकर श्रीरामकॄष्ण अलख के गतिया बतावे रे बटोहिया |

 बिद्यापति कालीदास सूर जयदेव कवि तुलसी के सरल कहानी रे बटोहिया   ||

जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखि आउ जहां सुख झूले धान खेत रे बटोहिया | 

बुद्धदेव पॄथु बिक्रमा्रजुन सिवाजी के फिरि-फिरि हिय सुध आवे रे बटोहिया ||

अपर प्रदेस देस सुभग सुघर बेस मोरे हिंद जग के निचोड़ रे बटोहिया|

 सुंदर सुभूमि भैया भारत के भूमि जेही जन ‘रघुबीर’ सिर नावे रे बटोहिया  ||


---------    बाबू रघुवीर नारायण सिंह।



                                                                       
बटोहिया गीत  का महत्त्व  


 रघुवीर नारायण जी का जन्म सारण जिले के दहियावां में 30 अक्टूबर 1884 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम जगदेव नारायण था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा जिला स्कूल छपरा में तथा अंग्रेजी में प्रतिष्ठा की शिक्षा पटना कॉलेज में हुई। अंग्रेजी में लिखने वाले श्री रघुवीर नारायण की पहचान खड़ी बोली के पहले बिहारी कवि के रूप में बनी । रघुवीर नारायण  हिन्दी साहित्यकार तथा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे। उनके द्वारा रचित 'बटोहिया' नामक भोजपुरी राष्टीय गीत को पूर्वी भारत में “वन्दे मातरम्” के बराबर सम्मान मिला। जन-जागरण गीत की तरह गाया जाने वाला यह गीत पूर्वी लोकधुन में लिखा गाया है।

बटोहिया' एक ऐसी रचना जो बिहार के प्रथम भोजपुरी राष्ट्रगीत का दर्जा पा चुकी कविता है.१९७० तक बिहार स्टेट टेक्स्ट बुक समिति द्वारा कक्षा १० और ११ की प्रकाशित हिंदी काव्य संग्रह के आवरण पृष्ठ पर 'बटोहिया' का मुद्रण अनवरत किया जाता था.गीत की कीर्ति सरहद पार मारीशस, त्रिनिदाद, फिजी, गुयाना तक थी. 

  “बटोहिया” बिहार के प्रथम राष्ट्रगीत का दर्जा रखता है।रघुवीर नारायण ने यह गीत 1910 ईस्वी में लिखा। 1912 ई० के बिहारी छात्र-सम्मेलन के मोतिहारी अधिवेशन में बिहार केशरी डॉ० श्री कृष्ण सिंह के भाई गोपीकृष्ण सिंह ने इसे अपने ओजस्वी स्वर में गाया था। बिहार प्रवास के दौरान कई कंठों से बटोहिया का सस्वर पाठ सुन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी बोल पड़े थे– “अरे!यह तो भोजपुरी का बंदे मातरम है। ”इस गीत की प्रशंसा पण्डित रामावतार शर्मा, डॉ०राजेन्द्र प्रसाद, सर यदुनाथ सरकार, पण्डित ईश्वरी प्रसाद शर्मा, भवानी दयाल संन्यासी, आचार्य शिवपूजन सहाय, डॉ० उदय नारायण तिवारी सहित तत्कालीन सभी राष्ट्रकवियों ने की ।


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