बिहार के प्रमुख मंदिर--अम्बिका भवानी मंदिर,छपरा
अम्बिका भवानी मंदिर,छपरा
अम्बिका भवानी मंदिर बिहार के छपरा जिला के आमी (अम्बे स्थान)नमक स्थान पर स्थित है। यह एक सिद्ध शक्ति पीठ है। यहाँ का मंदिर अति प्राचीन हैं। इस मंदिर के पास एक अति प्राचीन कुआँ है तथा पास में ही एक यज्ञ कुंड भी है। ऐसा कहा जाता है की माता सती ने यहीं अपने प्राण त्यागे थे और यह नगर दक्ष प्रजापति के राज्य के अधीन आता था। उस समय इस नगर का नाम दिघ - द्वार था , जो कालांतर में दिघवारा हो गया। माता सती और महादेव की कहानी शिव पुराण में वर्णित है। आदि शक्ति की पूजा में एक समान त्रिभुज का उतना ही महत्व है जितना कि भगवान विष्णु के लिए सालिग्राम और भगवान शिव के लिए शिव लिंग का। त्रिभुज के केंद्र को अम्बिका कहा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से तीन शिव मंदिरों (बैद्यनाथ, विश्वनाथ और पशुपतिनाथ) की दूरी यहा से समान है। और यदि हम तीन शिव मंदिर को जोड़ने वाली एक काल्पनिक रेखा खींचते हैं तो यह केंद्र में अम्बिका अष्टम अमावस्या के साथ एक समभुज त्रिकोण होगा। यहां गंगा शिव रूप में लिंगाकार है। गंडक व सोन का संगम रहा आमी लिंगाकार शिव एवं अंडाकार शक्ति रूप में है। नौ दुर्गा की नौ पिण्डियों के साथ एकादश रूद्र यहां स्थापित हैं। यह सिद्धपीठ अम्बिका स्थल गंगा, सोन एवं नारायणी का संगम था। भौगोलिक परिवर्तन स्वरूप दो नदियों की धारा बदल गयी।
मंदिर एक किले की संरचना में है जो चारों तरफ से गंगा नदी के किनारे पर घिरा हुआ है। यह सारण के बाढ़ प्रभावित जिले में स्थित है और यह गंगा के पास है। गंगा दक्षिण जाने वाले इस बिंदु पर अंकुश लगाती है। इस बिंदु पर गंगा की छवि लिंगवत है। बाढ़ के दौरान भी गंगा कभी भी किले को नहीं छूती है। मंदिर की पूरी संरचना मलबे पर है। 1973 के दौरान बिहार सरकार के पुरातत्व विभाग के तत्कालीन निदेशक श्री प्रकाश चंद्रा ने खुदाई की और पाल राजवंश के दौरान इस्तेमाल की गई ईंटों से बनी एक दीवार मिली।
लोग बताते है कि आमी में जब से मां अंबिका भवानी की पिंडी स्थापित हुआ। उस समय से हीं यहां मॉं दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित नहीं की जाती हैं। लोगों का भीड़ मंदिर में नवरात्र में लाखों की संख्या में जुटती है। मंदिर परिसर भक्तों से गुलजार रहता है।
भगवान शिव से प्रतिशोध लेने की इच्छा वश राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। दक्ष ने भगवान शिव और अपनी पुत्री माता सती को छोड़कर सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया। माता सती ने यज्ञ में उपस्थित होने की अपनी इच्छा भगवान शिव के समक्ष व्यक्त की, जिसे भगवान शिव ने रोकने के लिए अपनी पूरी कोशिश की परंतु माता सती यज्ञ में चली गई।
यज्ञ मे पहुंचने के पश्चात माता सती का कोई भी स्वागत नहीं किया गया। इसके साथ ही, दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का घोर अपमान भी किया। माता सती से अपने पिता द्वारा अपने पति का अपमान नहीं सहा गया। और अपमान से क्रोधित होकर माँ सती ने उसी यज्ञ कुंड मे कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
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