बिहार के प्रमुख मंदिर - मंगला गौरी मंदिर , गया
बिहार के प्रमुख मंदिर -मंगला गौरी मंदिर,गया
मंगला गौरी मंदिर , गया ----
मंगला गौरी मंदिर एक शक्ति पीठ है। भष्मकूट की पहाड़ी पर स्थित इस मंगला मंगला गौरी मंदिर को उन ५१ महाशक्तिपीठों में गिना जाता है जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। मंगला गौरी मंदिर देवी माता सती को समर्पित है। देवी मंगला गौरी को मंगल और परोपकार की देवी माना जाता है। मंगल मयी देवी मंगला देवी के इस मंदिर का वर्णन पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण, श्री देवी भगवत पुराण और मार्कंडेय पुराण में भी मिलता है।
मंगला देवी की मूर्ति को दूध, दही और पानी से स्नान करवा कर लाल कपड़े में लपेटा जाता है। फिर सिंदूर, मेंहदी और काजल से देवी का श्रृंगार करके आसान पर स्थापित किया जाता है। फल, मिठाइयां, आभूषण आदि मूर्ति सामने रख कर प्रार्थना की जाती है।
शिव पुराण की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जब देवी सती के मृत शरीर को सुदर्शन चक्र से विच्छेद किया था तो देवी के स्तन यहां आ गिरे थे। इसीलिए यहां पर देवी के स्तनों को पोषाहार का स्वरुप मान कर पूजा जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव, दुर्गा, देवी दक्षिण-काली, महिषासुर मर्दिनी और देवी सती के विभिन्न स्वरूपों के दर्शन किए जा सकते हैं। इइस परिसर में मां काली, गणपति, शिव और हनुमान के मंदिर भी हैं। इस छोटी-सी पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू करते ही पांडव भाइयों में से एक, भीम का मंदिर भी दर्शनीय है। यहां पर एक घुटने का चिन्ह् है और स्थानीय मान्यता है कि यहां पर भीम ने श्राद्ध-कर्म किया था। इस जगह को भीमवेदी गया के नाम से जाना जाता है।
महाष्टमी व्रत के दिन यहां बड़ी संख्या में मां के भक्त पहुंचते हैं. मंदिर के गर्भगृह में देवी की प्रतिमा रखी है, यहां भव्य नक्काशी बनी हुई है. इस गर्भगृह में वर्षो से एक दीप प्रज्वलित हो रहा है. कहा जाता है कि यह दीपक कभी बुझता नहीं है मंदिर के सामने वाले भाग में एक मंडप बना हुआ है. मंदिर परिसर में भगवान शिव और महिषासुर की प्रतिमा, मर्दिनी की मूर्ति, देवी दुर्गा की मूर्ति और दक्षिणा काली की मूर्ति भी विराजमान है. यहां कई और भी मंदिर है. इस मंदिर में उपा शक्ति पीठ भी है, जिसे भगवान शिव के शरीर का हिस्सा माना जाता है. शक्ति पोषण के प्रतीक को एक स्तन के रूप में पूजा जाता है.
यह मंदिर पर्वत पर स्थित है , इस पर्वत को भस्मकूट पर्वत कहते हैं. इस शक्तिपीठ को असम के कामरूप स्थित मां कमाख्या देवी शक्तिपीठ के समान माना जाता है.
कालिका पुराण के अनुसार, गया में सती का स्तन मंडल भस्मकूट पर्वत के ऊपर गिरकर दो पत्थर बन गए थे. इसी प्रस्तरमयी स्तन मंडल में मंगलागौरी मां नित्य निवास करती हैं जो मनुष्य शिला का स्पर्श करते हैं, वे अमरत्व को प्राप्त कर ब्रह्मलोक में निवास करते हैं. इस शक्तिपीठ की विशेषता यह है कि मनुष्य अपने जीवन काल में ही अपना श्राद्ध कर्म यहां संपादित कर सकता है.
वर्षा-ऋतु में हर मंगलवार को यहां एक विशेष पूजा आयोजित की जाती है। इस दिन स्त्रियां व्रत रखती हैं ताकि उनके परिवार समृद्ध हों और उनके पति को सफलता व प्रसिद्धि प्राप्त हो। इस पूजा में देवी मंगला गौरी को 16 प्रकार की चूड़ियां, सात किस्म के फल और पांच तरह की मिठाई समर्पित की जाती है। माँ मंगला गौरी की पूजा करने वाली स्त्री या पुरुष के परिवार में कभी अमंगल नहीं होता है।





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