बिहार के प्रमुख मंदिर ------- सूर्य मंदिर , औरंगाबाद
बिहार के प्रमुख मंदिर---सूर्यमंदिर,औरंगाबाद
सूर्य मंदिर , औरंगाबाद -----
सनातन धर्म और संस्कृति में सूर्य का बड़ा ही महत्त्व है। सूर्य पूजा आदि काल से होती आ रही है। बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित यह प्राचीन सूर्य मंदिर बड़ा ही अद्भुत और आकर्षक है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया था। यह देश का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है, जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर है।
इस मंदिर में सूर्य देवता की सात रथों पर सवार एक मूर्ति है। इसमें सूर्य के तीनों रूपों उदयाचल-प्रात: सूर्य, मध्याचल- मध्य सूर्य और अस्ताचल -अस्त सूर्य के रूप में विद्यमान है। पूरे देश में सूर्य देवता का यही एकमात्र स मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।
यह सूर्य मंदिर बिहार के औरंगाबाद जिले के देव नामक स्थान पर स्थित एक प्रसिद्ध एवं अति प्राचीन मंदिर है । इस लिए इसे देव सूर्य मंदिर या देवार्क सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह देव सूर्य मंदिर मंदिर अपनी अद्भुत शिल्पकला के लिए जाना जाता है। बेहतरीन पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस देव सूर्य मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का उदाहरण प्रस्तुत करती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह देव सूर्य मंदिर त्रेता युग में बना था और यहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और माता जानकी पूजा के लिए आये थे। इतिहासकारों की मने तो यह मंदिर छठी शताब्दी ईशा पूर्व की है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर को कृष्ण के पुत्र, साम्ब द्वारा निर्मित बारह सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। साम्ब की कथा के आलावा यह भी कहा जाता है कि यहां देव माता अदिति ने भी पूजा की थी। सूर्य देवता के साथ साथ छठी माता का भी नाम जुड़ा है।
षष्टी देवी ( छठी माता ) ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं। छथि माता बच्चो की देवी हैं।
इस सूर्य मंदिर को लेकर एक और कथा है जिसके अनुसार देवासुर-संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
इस सूर्य मंदिर में सामान्य रूप से वर्ष भर धार्मिक लोग पूजा हेतु आते रहते हैं। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ साथ अब पुरे विश्व में विशेष तौर पर मनाये जाने वाले छठ पर्व के अवसर पर यहाँ पर भारी भीड़ उमड़ती है। यहाँ लगभग प्रत्येक दिन श्रद्धालु के भीड़ का जमावड़ा लगा होता है पर खास कर रविवार को यहाँ दूर दूर से हवन और पूजन करने हेतु श्रद्धालु आते रहते हैं। ऐसी मान्यता है की आज तक इस देव मंदिर से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटा। अपनी मनोकामना पूरी हो जाने के बाद भक्त यहाँ छठ पूजा के अवसर पर आकर सूर्य देवता की पूजा करतें हैं।