बिहार का बौद्ध सर्किट
बिहार का बौद्ध सर्किट
प्राचीन काल से ही बिहार ज्ञान भूमि रही है। राजकुमार सिद्धार्थ को यही बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। बौद्ध धर्म अहिंसा और शांति का सूत्रधार है। यहीं से भगवान बुद्ध ने पूरी दुनियां में बौद्ध धर्म को पहुंचाया और आज विश्व की कुल आबादी का 25 प्रतिशत बौद्ध है।
बिहार का बोध
गया ,
वैशली और राजगीर
ये सभी बौद्ध धर्म के लिए मुख्य तीर्थ केंद्र हैं। बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे 49 दिनों के ध्यान के बाद, सिद्धार्थ. को ज्ञान की प्राप्ति हुई और वो भगवान बुद्ध कहलाए।
महाबोधि मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। बिहार की वह पावन धरती है जहां तथागत भगवान बुद्ध ने मानव के दुःखों के कारणों की तलाश की और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति की। बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध के पौराणिक आध्यात्मिक ज्ञान स्थली पर महाबोधि मंदिर है।बौद्ध सर्किट मानव कल्याण की दिशा में भगवान बुद्ध के कार्यों की निशानी है। यह पावन स्थल दुनिया भर के बौद्ध तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।
बिहार के प्रमुख बौद्ध धार्मिक स्थल निम्नलिखित है l
बोध गया का महाबोधि मंदिर :
महाबोधि मंदिर, बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक, जो बुद्ध के ज्ञानोदय (बोधि) के स्थान को चिह्नित करता है। यह बोधगया (मध्य बिहार राज्य, पूर्वोत्तर भारत) में स्थित है।बिहार की वह पावन धरती है जहां तथागत भगवान बुद्ध ने मानव के दुःखों के कारणों की तलाश की और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति की। बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध के पौराणिक आध्यात्मिक ज्ञान स्थली पर महाबोधि मंदिर है।महाबोधि मंदिर दुनिया में बौद्ध तीर्थयात्रा का सबसे पवित्र स्थान है।बौद्ध सर्किट मानव कल्याण की दिशा में भगवान बुद्ध के कार्यों की निशानी है।मंदिर के गर्भगृह में बुद्ध की सोने की चित्रित प्रतिमा, पाल राजाओं द्वारा निर्मित काले पत्थर कि प्रतिमा है।
यहाँ भगवान बुद्ध को भूमिपुत्र मुद्रा या पृथ्वी को छूने वाले आसन में बैठा हुआ देखा जाता है।महाबोधि मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है।यह पावन स्थल दुनिया भर के बौद्ध तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।
नालंदा का विश्व शांति स्तूप :
इस स्तूप का मुख्य केंद्र भगवान बुद्ध की चार स्वर्ण प्रतिमाएँ है जो उनके जीवन के चार चरणों ( जन्म, ज्ञान, उपदेश और मृत्यु) को दर्शाती है| यह स्तूप शांति का प्रतीक है l
उजले संगमरमर के पथरों से बना, 40 मीटर ऊँचा स्तूप रत्नागिरि के पहाड़ियों पर स्थित है।स्तूप तक 2200 फीट लंबा रोपवे से पहुंचा जा सकता है, जो आपके सफर को और भी रोमांचक बनाता है। यह 80 शांति स्तूप में से एक है जो दुनिया भर में नव-बौद्ध संगठन निप्पोनज़न मायोहोजी द्वारा बनाया गया है।स्तूप की आधारशिला 1965 में राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने रखी थी और 1969 में इसका उद्घाटन राष्ट्रपति वी वी गिरि ने किया था।
वैशाली का अशोक स्तंभ :
वैशाली शहर में स्थित इसअशोक स्तम्भ के शीर्ष पर केवल एक ही शेर है| स्तम्भ के समीप एक बौद्ध मठ भी है| वैशाली का यह स्तम्भ अशोक के अन्य दूसरे स्तम्भों से बिलकुल अलग है क्योंकि स्तम्भ के शीर्ष पर केवल एक ही शेर है और उसका मुंह उत्तर दिशा की ओर है जिस दिशा में तथागत बुद्ध ने अपनी अंतिम यात्रा की थी| यह १८.३ मीटर ऊँचा लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है l
वैशाली का बुद्ध अवशेष स्तूप :
भगवान बुद्ध का यह स्तूप बौद्ध धर्म मे काफी महत्व रखता है l
बुद्ध अवशेष स्तूप, भगवान बुद्ध के पार्थिव शरीर के आठ भागों में से एक को महापरिनिर्वाण प्राप्त करने के बाद, बौद्धों के लिए सबसे श्रद्धेय स्थलों में से एक है और वैशाली जिले में पटना के उत्तर-पश्चिम के आसपास स्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के लिए एक संरक्षित स्थल है ।बुद्ध अवशेष स्तूप का निर्माण 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में एक मिट्टी के स्तूप के रूप में लिच्छविओं द्वारा किया गया था।
बाद में 1958-1962 के दौरान पटना स्थित केपी जयसवाल शोध संस्थान के तत्वावधान में किए गए पुरातात्विक उत्खनन में स्तूप की खोज की गई । स्तूप के मूल से खुदाई किए गए अवशेष कास्केट में पृथ्वी के साथ मिश्रित भगवान बुद्ध की पवित्र राख, शंख का एक टुकड़ा, मोतियों के टुकड़े, एक पतली सुनहरा पत्ती और एक तांबे के पंच-चिह्नित सिक्का शामिल थे। कास्केट को 1972 में पटना म्यूजियम लाया गया था।
पूर्वी चंपारण का केसरिया स्तूप :
केसरिया स्तूप पूर्वी चम्पारण से ३५ किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज - चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है| यह पुरातात्विक महत्व का प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है|यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है| बुद्ध ने वैशाली से कुशीनगर जाते हुए एक रात केसरिया में बितायी थी तथा लिच्छविओं को अपना भिक्षा पात्र प्रदान किया था | कहा जाता है की जब भगवान बुद्ध यहाँ से जाने लगे तो लिच्छविओं ने उन्हें रोकने का काफी प्रयास किया| लेकिन जब लिच्छवि नहीं माने तो भगवान बुद्ध ने उन्हें रोकने के लिए नदी में कृत्रिम बाढ़ उत्पन की| इसके पश्चात ही भगवान् बुद्ध यहाँ से जा पाने में सफल हो सके थे| सम्राट अशोक ने यहाँ एक स्तूप का निर्माण करवाया था| वर्तमान में यह स्तूप १४०० फ़ीट के क्षेत्र में फैला हुआ है| केसरिया बौद्ध स्तूप की ऊंचाई आज भी १०४ फ़ीट है , इसे विश्व का सबसे बड़ा स्तूप माना जाता है|
भागलपुर का विक्रम शीला अवशेष :
बिहार प्रांत के भागपलुर जिले में स्थित विक्रमशिला एक अन्तरराष्ट्रीय ख्याति का शिक्षा केन्द्र रहा है। विक्रमशिला के महाविहार की स्थापना नरेश धर्मपाल (775-800ई.) ने करवायी थी। यहाँ 160 विहार तथा व्याख्यान के लिये अनेक कक्ष बने हुये थे। धर्मपाल के उत्तराधिकारी तेरहवीं शताब्दी तक इसे राजकीय संरक्षण प्रदान करते रहे। परिणामस्वरूप विक्रमशिला लगभग चार शताब्दियों से भी अधिक समय तक अंतरराष्ट्रीय ख्याति का विश्वविद्यालय बना रहा। विश्वविद्यालय में अध्ययन के विशेष विषय व्याकरण, तर्कशास्त्र, मीमांसा, तंत्र, विधिवाद आदि थे।आचार्यों में दीपंकर श्रीज्ञान का नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय है, जो इस विश्वविद्यालय के कुलपति थे।कहा जाता है की बख्तियार खिलजी नामक मुस्लिम आक्रमणकारी ने सन ११९३ के आसपास इसे नष्ट कर दिया था|वर्तमान समय में विश्वविद्यालय के भग्नावशेष को देख कर इसके गौरवशाली अतीत और विख्याति की अनुभूति कर सकते है I
गया का सुजाता गढ़ स्तूप :
बौद्धकालीन सुजाता को हम उस स्त्री के रूप में जानते हैं जिसने कठोर तप के कारण मरणासन्न बुद्ध को खीर खिलाकर उन्हें नया जीवन और जीवन के प्रति संतुलित दृष्टि दी थी| पौराणिक कथा के अनुसार , सुजाता ने बुद्ध को खीर का एक कटोरा अर्पित किया , जब उन्होंने बुद्ध को ध्यान से मुक्त होते हुए देखा , बुद्ध ने आत्म - वंचना की निर्थकता का एहसास किया और महिला के खीर खाने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया| यह माना जाता है की भोजन ने न केवल बुद्ध को ताकत दी बल्कि उन्हें मध्य मार्ग का पालन करने के लिए भी प्रेरित किया | इसके अतिरिक्त भी बौद्ध-ग्रंथों में सुजाता के जीवन और अंत के बारे में बहुत कुछ है| सुजाता स्तूप गया ज़िले के बकरौर जिले में स्थित है| ऐसी मान्यता है की इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था| l