सारण जिले का परिचय --
सारण जिले का परिचय --
सारण जिला ---
सारण जिला सारण प्रमंडल का हिस्सा है। जिला मुख्यालय छपरा है।
जिले के उत्तर में सिवान तथा गोपालगंज , दक्षिण में गंगा एवं घाघरा नदियों के पार पटना एवं भोजपुर जिला, पूर्व में मुजफ्फरपुर एवं वैशाली जिला तथा पश्चिम में सिवान तथा उत्तर प्रदेश का बलिया जिला स्थित है। जिले में 3 अनुमंडल छपरा सदर , सोनपुर और मढ़ौरा हैं तथा कुल 20 प्रखंड हैं।
तिरहुत प्रमंडल के पश्चिमी छोर पर अवस्थित सारण जिला भौगोलिक ²ष्टि से 25 डिग्री 39 अंश तथा 32 डिग्री 39 अंश, उत्तरी अक्षांश एवं 83 डिग्री 54 अंश तथा 85 डिग्री 12 अंश पूर्वी देशांतर के मध्य में स्थित है। सारण का वर्गक्षेत्र 2.678 वर्गमील तथा 1951 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 31 लाख 55 हजार 144 है। इसका प्रमुख नगर तथा प्रशासनिक मुख्यालय छपरा है जो कि घाघरा (सरयू) नदी के उत्तरी क्षोर पर अविस्थत है। यह स्थान गंगा नदी के अपने पिछले संगम के करीब है तथा 25 डिग्री 47 अंश उत्तर तथा 84 डिग्री 44 अंश पूरब में स्थित है।
सारण क्षेत्र का इतिहास बहुत प्राचीन है। आदि काल से पुराणों में इसकी चर्चा है।
शिव पुराण के अनुसार आज के दिघवारा के आमी में अम्बिका भवानी का शक्ति स्थल है। सारण क्षेत्र में दिघवारा एक प्रखंड है। आज का दिघवारा प्राचीन काल का दीघ - द्वार है यह दक्ष प्रजापति के राज्य का प्रवेश द्वार था। उस समय इस नगर का नाम दिघ - द्वार था , जो कालांतर में दिघवारा हो गया। माता सती और महादेव की कहानी शिव पुराण में वर्णित है। आदि शक्ति की पूजा में एक समान त्रिभुज का उतना ही महत्व है जितना कि भगवान विष्णु के लिए सालिग्राम और भगवान शिव के लिए शिव लिंग का। त्रिभुज के केंद्र को अम्बिका कहा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से तीन शिव मंदिरों (बैद्यनाथ, विश्वनाथ और पशुपतिनाथ) की दूरी यहा से समान है। और यदि हम तीन शिव मंदिर को जोड़ने वाली एक काल्पनिक रेखा खींचते हैं तो यह केंद्र में अम्बिका अष्टम अमावस्या के साथ एक समभुज त्रिकोण होगा। यहां गंगा शिव रूप में लिंगाकार है। गंडक व सोन का संगम रहा आमी लिंगाकार शिव एवं अंडाकार शक्ति रूप में है। नौ दुर्गा की नौ पिण्डियों के साथ एकादश रूद्र यहां स्थापित हैं। यह सिद्धपीठ अम्बिका स्थल गंगा, सोन एवं नारायणी का संगम था। भौगोलिक परिवर्तन स्वरूप दो नदियों की धारा बदल गयी।
इसके अलावा हरिहर नाथ क्षेत्र का वर्णन भी पुराणों में मिलता है जो आज का सोनपुर है। यही पर गज और ग्राह की लड़ाई हुई थी। भगवन विष्णु ने ग्राह को अपने सूयदर्शन चक्र से मरकर गज को बचाया था।
बुद्ध के समय में यह इलाका काफी घने जंगलो से भरा था। गंगा के उत्तरी भाग में दो बड़े अरण्य थे , एक चम्पा-अरण्य जो आज का चम्पारण है और दूसरा शरणा-अरण्य जो आज का सारण है। कहा जाता है कि भगवन बुद्ध के समय में लोग यही आकर अपना मांसाहार और हिंसक प्रवित्ति छोड़कर बुद्ध के शरण में जाते थे इसीलिए इस स्थान को शरणा-अरण्य कहते थे। कालान्तर में यह सारण के नाम से जाना जाने लगा।
मुग़ल काल में सारण भी मुग़लों की बर्बरता का शिकार रहा। 1211 में बंगाल के गवर्नर गयासुद्दीन दे तिरहुत के राजा के राज्य पर चढ़ाई कर दी। 1211 से 1236 के बिच तिरहुत के साथ -साथ सारण को भी काफी नुकसान हुआ। आईने -अकबरी के अनुसार सारण को छह प्रांतों (राजस्व प्रभाग) में से एक के रूप में दर्ज करता है, जो बिहार प्रांत का निर्माण करता है। 1765 में ईस्ट इंडिया कंपनी को दीवानी के अनुदान के समय, सारण और चंपारण सहित आठ सरकारें मिलीं। इन दोनों को बाद में सारण नामक एकल इकाई के रूप में संयोजित किया गया। 1829 में कमिशनर्स डिवीजन की स्थापना के समय सारण (चंपारण के साथ) को पटना डिवीजन में शामिल किया गया था। यह 1866 में चंपारण से अलग हुआ। बाद में 1908 में सारण को तिरहुत डिवीजन का हिस्सा बनाया गया । इस समय तक इस जिले में तीन उप-विभाग थे, अर्थात् सारण, सीवान और गोपालगंज। 1972 में पुराने सारण जिले का प्रत्येक उप-विभाजन एक स्वतंत्र जिला बन गया।
सारण के लोकनायक जय प्रकाश नारायण , डॉ राजेंद्र प्रसाद एवं बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद को कौन नहीं जनता।
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