गया जिले के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल -


 गया जिले के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल -

गया शहर प्राचीन   और मुख्यतः एक धार्मिक शहर है।   गया शहर के पूर्बी छोर पर प्रबाह्मान फल्गु नदी मूलतः एक बरसाती नदी है | साल के अन्य समय में यह नदी बिलकुल सुखा पढ़ा होता है | परन्तु नदी में थोड़ी सी बालू की रेत को हटाए जाने पर ही पानी मिल जाता है | पौराणिक कथा के अनुसार माता सीता द्वारा श्राप दिए जाने के पश्चात् फल्गु नदी अन्तःसलिला के रूप में प्रबाहित होती आ रही है |

  यहाँ कई महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है जो पर्यटन के लिए काफी महत्वपूर्ण है।  

 

विष्णुपद  मंदिर - 




गया शहर बिहार राज्य की राजधानी पटना से 100 कि0 मी0 दूर अवस्थित है | ऐतिहासिक रूप से गया प्राचीन मगध साम्राज्य का हिस्सा था | यह शहर फल्गु नदी के तट पर अवस्थित है और हिंदुओं के लिए मान्यताप्राप्त पवित्रतम स्थलों में से एक है | तीन पहाड़ियॉं मंगलागौरी, सृंग स्थान , रामशिला और ब्रह्मयोनि इस शहर को तीन ओर से घेरती है | जिससे इसकी सुरक्षा एवं सौंदर्या प्राप्त होता है | गया महान विरासत एवं ऐतिहासिक को धारण करने वाला एक प्राचीन स्थान है गया शहर को देश एवं बिहार के मुख्य शहरों से जोड़ने के लिए विभिन्न प्रकार के यातायात के साधन हैं |
गया सिर्फ़ हिंदुओं का ही नहीं वरण बौद्धों का भी पवित्र स्थान है | गया में कई बौद्ध तीर्थ स्थान हैं | गया के ये पवित्र स्थान प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं | जिनमें से अधिकांश भौतिक सुविधाओं के अनुरूप है | फल्गु नदी के तट एवं इस पर स्थित मंदिर सुन्दर एवं आकर्षक हैं | फल्गु नदी के तट पर स्थित पीपल का वृक्ष जिसे अक्षयवट कहते हैं, हिंदुओं के लिए पवित्र है | यह वृक्ष अपनी दिव्यता की वजह से पूजा जाता है |
मंगला गौरी मंदिर में भगवान शिव की प्रथम पत्नी के रूप में मान्य सती देवी की पूजा की जाती है | यहाँ स्थित दो गोल पत्थरों को पौराणिक देवी सती के स्तनों का प्रतीक मानकर हिंदुओं के बीच पवित्र माना जाता है | गया का सबसे आकर्षक स्थल विष्णुपद मंदिर है | यह फल्गु नदी के तट पर स्थित है और इसमें बेसाल्ट पत्थरों पर भगवान विष्णु के चरण चिन्ह खुदे हैं | लोगों की मान्यता है की भगवान विष्णु ने यहीं पर गयासुर की छाती पर अपने पैर रख कर उसका वध किया था |
प्राचीन विष्णुपद मंदिर को बाद में इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने 18वीं सदी में पुननिर्मित कराया | हिंदू विष्णुपद स्थित चरण चिन्हों को भगवान विष्णु का जबकि बौद्ध इन्हें भगवान बुद्ध के चरण चिन्ह के रूप में मान्यता देते हैं | यह मंदिर यहाँ का सबसे मुख्य धार्मिक तीर्थस्थल है |
गया शहर के नामकरण के पीछे यह मान्यता है की यहाँ भगवान विष्णु ने एक द्वन्द में गयासुर का वध किया था | यह शहर इतना पवित्र है कि यहाँ स्वयं भगवान राम ने अपने पितरों का पिंडदान किया था | प्राचीन ग्रंथों में वर्णन है कि भगवान राम अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करने क लिए गया आए थे और देवी सीता भी उनके साथ थी | गया बुद्ध के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यही वह स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने 1000 ग्रामवासियों को जो अग्नि पूजक थे जो आदित्यपर्याय सूत्र का उपदेश दिया था |



बोधगया --




 बोधगया विश्व के प्रमुख एवं पवित्र बौद्ध तीर्थस्थलों में से एक है | यही बोद्धि वृक्ष के नीचे गौतम ने अलौकिक ज्ञान प्राप्त किया जिसके उपरांत उन्हें बुद्ध कहा गया | हिमालय की तराई में स्थित कपिलवस्तु (वर्तमान नेपाल में ) के शाक्य गण राज्या के राज कुमार के रूप में जन्में बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ जैसे – ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण दोनों बिहार में ही घटित हुए | बौद्ध धर्म का वास्तविक उद्य बिहार में हुआ और बुद्ध के उपदेशों एवं उन के सरलतम जीवन शैली के उदाहरण और हर जीवित प्राणी के प्रति अन्य अन्यतम करुणा के कारण पूरे विश्व मे फैल गया | महत्वपूर्ण यह भी है की बिहार राज्य का नाम भी ‘विहार’ शब्द से ब्यूतपन्न है जो जिसका तात्पर्य उन बौद्ध विहारों से है जो प्रचुर मात्रा में बिहार में फैले थे | बुद्ध के महापरि निर्वाण के सैकड़ों वर्ष बाद मगध के मौर्य राजा अशोक (269 ई0 पू0 से 232 ई0पू0) ने बौद्ध धर्म के पुनरूत्थान , सुदूढीकरण एवं व्यापक प्रचार – प्रसार के लिए अनेक प्रयास किए| अशोक ने बौद्ध भिच्छुओं के लिए चैत्य और विहार बनवाए |
उसने अनेक अभिलेख खुदवाये जो प्रस्तर शिलालेखों के रूप में महत्वपुर्णा एतिहसिक धरोहर है, जिनमें बुध और बौद्ध धर्म से जुड़े अनेक बातों का पता चलता है | अशोक के अभिलेख जो आज भी अवशिष्ट हैं, विद्वानों और तीर्थ – यात्रियों के लिए बुद्ध के जीवन की घटनाओं एवं शिचाओं की जानकारी का महत्वपुर्णा स्त्रोत हैं | यहां अत्यंत भव्य महाबोधि मंदिर है जिस में वास्तविक बोधिवृक्ष अभी भी खड़ा है| इस मंदिर का स्थापत्य सैकड़ों वर्षों के सांस्कृतिक विरासतों का समन्वय है, हांलांकि इस की भवन निर्माण कला गुपत युगीन कला का अदभुत नमूना है | यह मंदिर विरासत के रूप में अभिलेख भी रखता है जिनमें 7 वीं से 10 वीं सदी ई0 के बीच के श्रीलंका म्याँमार और चीन से आए तीर्थयात्रिओं के यात्रा विवरण मिलते हैं | यह शायद वही मंदिर है जहाँ सातवीं सदी मेंह्वेनसांग आया था |


महाबोधि मंदिर------ 




यह मंदिर बोधिवृक्ष के पूर्व में स्थित है | इसका स्थापत्य अदभुत है | इसकी निन 48 वर्ग फुट है जो सिलिंडर पिरामिट के रूप में इस की गर्दन तक उठती चली गई है क्यों कि इसका आकर सिलिन्डरिकल है | मंदिर की कुल उँचाई 170 फुट है और मंदिर के शिखर पर छत्र है जो धर्म की संप्रभुता का प्रतीक है | इसके चारों कोनों पर स्थित मीनार कलात्मक ढंग से बनाए गये हैं जो पवित्र बनावट को संतुलन प्रदान करते हैं | यह पवित्र इमारत समय पर फहराया गया एक महान एक बैनर है जो दुनिया को सांसारिक समस्याओं से उपर उठकर , मानव के दुखमय जीवन को शांति प्रदान करने के लिए बुद्ध के पवित्र प्रयासों का प्रचार करने के लिए और ज्ञान अच्छे आचरण और अनुशासित जीवन के माध्यम से दिव्यशांति प्राप्त करने के लिए किए गये प्रयास का प्रतीक है |
मंदिर के अंदर मुख्य क्षेत्र में बुध की बैठी हुई मूर्तिस्थित है जिस में वे अपने दाएँ हाथ से बनी हुई है जो श्रद्धालूओं के दान से लाई गई थी | मंदिर का पूरा छेत्र कई श्रद्धा हेतु निर्मित स्तूपों से भरा हुआ है| ये स्तूप विभिन्न आकर के हैं जो पिछले 2500 सालों के दौरान बनाए गये हैं| इनमें से ज़्यादातर स्थापत्य की दृष्टि से अत्यंत आकर्षक हैं | प्राचीन वेदिका जो मंदिर को चारों ओर घेरती हैं पहली सदी ई०पू० की है और यह उस सदी की रोचक स्मारकों मे से एक है।
  

80 फुट की बुद्ध प्रतिमा---




महान बुद्ध की मूर्ति को 80 फुट की बुध प्रतिमा के रूप मे जाना जाता है | इसका अनावरण एव लोकपन 18 नवेंबर 1989 को समारोहपूर्वक 14 वे पवित्र दलाई लामा की उपस्थति मे किया गया था जिन्होने इस 25मीटर की प्रतिमा को आशीर्वाद प्रदान किया| यह महान बुद्ध की पहली प्रतिमा थी जिसे आधुनिक भारत के इतिहास मे बनाया गया था| यह प्रतिमा महाबोधि मंदिर बोधगया के आगे स्थित है| यहा पर सुबह 7 बजे 12 बजे तक दोपहर 2बजे से शाम . 6 बजे तक दर्शन किया जा सकता है


 गया -संग्रहालय  -- 




यहाँ पर बोधगया और आसपास क स्थित खुदाई स्थलो से प्राप्त बहुत सी हिंदू और बुद्ध पुरातात्विक वस्तुओं का रोचक सक़लन है| संग्राहलय सामान्यताया शुक्रवार को बंद रहता है| प्राचीन विदेशी मतो मे से एक जिसे कलात्मक रेगल थाई स्थापत्या शैली मे बनाया गया है| यह मंदिर लाल और पीले रतन के रूप मे सामने की शांत झील मे प्रतिबिम्बत होता है| यहा सानदार बुद्ध प्रतिमाएँ है साथ ही भव्य भित्तिचित्र है जो बुद्ध के जीवन और कुछ आधुनिक घटनाओ जैसे वृक्षारोपण का महत्व को सैलीगत तरीके से अत्यंत खूबसूरती से दर्शाया गया है | यह महाबोधि मंदिर से आगे स्थित है|
घूमने का समय – सुबह सात बजे से 12 बजे तक और दोपहर 2 बजे से 6 बजे तक |



सुजाता गढ़ ---




 इस प्राचीन स्तूप के बारे मे मान्यता है की इसी स्थान पर सिद्धार्थ गौतम ने ज्ञान पर्प्ति से पूर्व भूखे रह कर कठोर तपस्या की थी | गौतम को अत्यंत कृशकाय पाकर पास क गौव की औरत सुजाता ने खीर का कटोरा पेश किया| गौतम ने वह उपहार स्वीकार किया स्वपिड़ा के कठोर निग्रह की व्यर्थता को महसूस किया | इसके बाद उन्होने बोधिवृक्ष के नीचे ध्यान लगाया और ज्ञान प्राप्त कर बुद्ध बन गे. यह महाबोधि मंदिर बोधगया से लगभग दो किलोमेट दूर है|


दुंगेश्वरी मंदिर / दुंगेश्वरी पहाड़ी




मान्यताओं के अनुसार बोधगया मे ज्ञान प्राप्ति के पूर्व सिद्धार्थ गौतम ने यहाँ 6 वर्षों तक ध्यान किया था| बुध के इस जीवन चरण की याद मे दो छोटे मंदिर यहाँ बनाए गये है| क्षीण स्वर्ण से निर्मित बुध की एक प्रतिमा गुहा मंदिर मे रखी है जो बुद्ध के कठोर निग्रह को दर्शाती है और दूसरे मंदिर मे लगभग छह फुट उँची बुद्ध की प्रतिमा है| एक हिंदू देवी दुंगेश्वरी की भी मूर्ति गुहा मंदिर के अंदर रखी हुई है।  


बानाबर (बराबर) पहाड़ ----




गया से लगभग 20 किलोमीटर उत्तर बेलागंज से 10 किलोमीटर पूरब में स्थित है। इसके ऊपर भगवान शिव का मन्दिर है, जहाँ हर वर्ष हजारों श्रद्धालू सावन के महीने में जल चढ़ते है। कहते हैं इस मन्दिर को बानासुर ने बनवाया था। पुनः सम्राट अशोक ने मरम्मत करवाया। इसके नीचे सतघरवा की गुफा है, जो प्राचीन स्थापत्य कला का नमूना है। इसके अतिरिक्त एक मार्ग गया से लगभग 30 किमी उत्तर मखदुमपुर से भी है। इस पर जाने हेतु पातालगंगा, हथियाबोर और बावनसीढ़ी तीन मार्ग है, जो क्रमशः दक्षिण, पश्चिम और उत्तर से है, पूरब में फलगू नदी है।

और गया से लगभग 25 किलोमीटर पूरब में टनकुप्पा प्रखंड में चोवार एक गाँव है जो की गया जिले में एक अलग ही बिशेषता रखता है!इस गाँव में एक प्राचीन शिव मंदिर है जो अपने आप में ही एक बहुत बड़ी महानता रखता है!इस मंदिर में भगवान शिव को चाहे जितना भी जल क्यों नहीं चढ़ाये पर आजतक इसका पता नहीं लग पाया है!और इसी गाँव में खुदाई में बहुत ही प्राचीन अष्टधातु की मूर्तियाँ और चाँदी के बहुतें सिक्के मिले है!इस गाँव में एक ताड़ का पेड़ भी है,जो की बहुत ही अद्भुत है। इस ताड़ के पेड़ की विशेषता यह है कि इस पेड़ में तिन डाल है जो की भगवान शिव की त्रिशूल की आकार का है,ये गाँव की शोभा बढ़ाता है जी हाँ ये चोवार गाँव की विशेषता है।



प्राचीन एबं अद्भुत शिव मंदिर (चोवार गॉव) ----







चोवार गया शहर से 35 किलोमीटर पूर्व में एक गाँव है चोवार जो की अपने आप में बहुत ही अद्भुत है इस गाँव में एक बहुत ही प्राचीन शिव मंदिर है जहा सैकड़ो श्रद्धालु बाबा बालेश्वरनाथ के ऊपर जल चढाते है पर आजतक ये जल कहाँ जाता है कुछ पता नहीं चलता है इसके पीछे के कारण किसी को नहीं पता चला। लगभग हजारो सालों से ये चमत्कार की जाँच करने आये सैकड़ो बैज्ञानिको ने भी ये दाबा किया है कि ये भगवान शिव का चमत्कार है।इसी गाँव में कुछ सालों पहले सड़क निर्माण के दौरान यहाँ एक बहुत ही बड़ा घड़ा निकला जिसमे हजारो शुद्ध चाँदी के सिक्के निकले थे।आज भी इस गाँव से अष्टधातु की अनेको मूर्तियाँ शिव मंदिर में देखने को मिलता है। . इस गाँव में एक अद्भूत ताड़ का पेड़ भी है जो इस चोवार गाँव की शोभा बढ़ाता है।इस ताड की खास बात ये है कि ताड का पेड़ भगवान के त्रिशुल के तरह त्रिशाखायुक्त है!दूर-दूर से लोग इस पेड़ को देखने के लिये आते हैं।


कोटेश्ववरनाथ ----- 

यह अति प्राचीन शिव मन्दिर मोरहर-दरधा नदी के संगम किनारे मेन-मंझार गाँव में स्थित है। यहाँ हर वर्ष शिवरात्रि में मेला लगता है। यहाँ पहुँचने हेतु गया से लगभग ३० किमी उत्तर पटना-गया मार्ग पर स्थित मखदुमपुर से पाईबिगहा समसारा होते हुए जाना होता है। गया से पाईबिगहा के लिये सीधी बस सेवा उपलब्ध है। पाईबिगहा से इसकी दूरी लगभग २ किमी है।गया से टिकारी होकर भी यहां पहुंचा जा सकता है। किवदन्ती है कि प्राचीन काल में बाण पुत्री उषा ने यह मंदिर बनवाया था।किन्तु प्राप्त लिखित इतिहास तथा पुरातात्विक विश्लेषण से ये सिद्ध है कि ६ सदी में नाथ परंपरा के ३५वे सहजयानी सिद्ध बाबा कुचिया नाथ द्वारा स्थापित मठ है।इसलिए इसे कोचामठ या बुढवा महादेव भी कहते है।माना जाता है कि मेन के पाठक बाबा तथा मंझार के रामदेव बाबू को यहाँ भगवान शिव का साक्षात्कार हुआ था।वर्तमान समय मे मठ के जीर्णोद्धार का स्वप्नादेश भगवान शिव ने उन्ही रामदेव बाबू के पुत्र भोलानाथ शर्मा जी को किया , जातिभेद के वैमनस्य से क्रंदन कर रहे क्षेत्र मे शिव जी के प्रेरणा से सांस्कृतिक साहित्यिक एकता का प्रयत्न भोलानाथ शर्मा छ्त्रवली शर्मा नित्यानन्द शर्मा आदि ने प्रारंभ किया। सांस्कृतिक एकता की यात्रा ने मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ बृहद् सांस्कृतिक केंद्र के रुप मे इसे स्थापित किया ।


सूर्य मंदिर गया ----

सूर्य मंदिर प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर के 20 किलोमीटर उत्तर और रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। भगवान सूर्य को समर्पित यह मंदिर सोन नदी के किनारे स्थित है। दिपावली के छ: दिन बाद बिहार के लोकप्रिय पर्व छठ के अवसर पर यहां तीर्थयात्रियों की जबर्दस्त भीड़ होती है। इस अवसर पर यहां मेला भी लगताहै।


ब्रह्मयोनि पहाड़ी ---




इस पहाड़ी की चोटी पर चढ़ने के लिए ४४० सीढ़ियों को पार करना

 होता है। इसके शिखर पर भगवान शिव का मंदिर है। यह मंदिर विशाल बरगद के

 पेड़ के नीचे स्थित हैं जहां पिंडदान किया जाता है। इस स्थान का उल्लेख रामायण में

 भी किया गया है। दंतकथाओं पर विश्‍वास किया जाए तो पहले फल्गु नदी इस पहाड़ी

 के ऊपर से बहती थी। लेकिन देवी सीता के शाप के प्रभाव से अब यह नदी पहाड़ी के

 नीचे से बहती है। यह पहाड़ी हिन्दुओं के लिए काफी पवित्र तीर्थस्थानों में से एक है।

 यह मारनपुर के निकट है।

इस पहाड़ी की चोटी पर चढ़ने के लिए ४४० सीढ़ियों को पार करना होता है। इसके शिखर पर भगवान शिव का मंदिर है। यह मंदिर विशाल बरगद के पेड़ के नीचे स्थित हैं जहां पिंडदान किया जाता है। इस स्थान का उल्लेख रामायण में भी किया गया है। दंतकथाओं पर विश्‍वास किया जाए तो पहले फल्गु नदी इस पहाड़ी के ऊपर से बहती थी। लेकिन देवी सीता के शाप के प्रभाव से अब यह नदी पहाड़ी के नीचे से बहती है। यह पहाड़ी हिन्दुओं के लिए काफी पवित्र तीर्थस्थानों में से एक है। यह मारनपुर के निकट है।


मंगला गौरी --- 




पहाड पर स्थित यह मंदिर मां शक्ति को समर्पित है। यह स्थान १८ महाशक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि जो भी यहां पूजा कराते हैं उनकी मन की इच्छा पूरी होती है। इसी मन्दिर के परिवेश में मां काली, गणेश, हनुमान तथा भगवान शिव के भी मन्दिर स्थित हैं।




बराबर गुफा --- 


यह गुफा गया से 20 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इस गुफा तक पहुंचने के लिए 7 किलोमीटर पैदल और 10 किलोमीटर रिक्शा या तांगा से चलना होता है। यह गुफा बौद्ध धर्म के लिए महत्वपूर्ण है। यह बराबर और नागार्जुनी श्रृंखला के पहाड़ पर स्थित है। इस गुफा का निर्माण बराबर और नागार्जुनी पहाड़ी के बीच सम्राट अशोक और उनके पोते दशरथ के द्वारा की गई है। इस गुफा उल्लेख ई॰एम. फोस्टर की किताब ए पैसेज टू इंडिया में भी किया गया है। इन गुफओं में से 7 गुफाएं भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरख में है।


देवी मंदिर नियाजीपुर, गया बिहार -----

देवी मंदिर नियाजीपुर का निर्माण सन 1961 में हुई और इसका उद्घाटन फ़रवरी 1961 में किया गया, इसका निर्माण नियाजीपुर गया के मूल निवासी स्वर्गीय राम उग्रह सिंह द्वारा किया गया था|

इसका उद्घाटन एक बहुत बड़े यज्ञ से हुआ था|इस समय मंदिर की देखभाल एक ट्रस्ट के माध्यम से की जाती है जिसके ट्रस्टी राम उग्रह सिंह के सबसे छोटे पुत्र श्री राज नंदन सिंह हैं। यह मंदिर एक तालाब के किनारे स्थित है जो इसकी खूबसूरती मे चार चाँद लगा देता है |


सूर्य मंदिर (पाई बिगहा ---

मखदुमपुर से ६ किमी दूर स्थित पाईबिगहा मोरहर किनारे बसा टिकारी राज्य का प्रमुख बाजार रहा है, हैमिल्टन बुचनन को यहाँ ई. पू. प्रथम सदी के प्राचीन शिव मंदिर के जीर्ण अवशेष मिले थे , बाजार के बीचोबीच उसी स्थान पर नया महादेव स्थान स्थापित है। पाईबिगहा मंझार रोड पर स्थित है एक प्राचीन सूर्य मंदिर जो जन आस्था का केन्द्र है।प्रति वर्ष छठपूजा मे मंदिर प्रांगण मे बडा मेला लगता है।दूर दूर से आकर लोग यहाँ छ्ठ पर्व मनाते हैं।माई जी नाम से सुविख्यत महिला भगवान् सूर्य की प्रमुख भक्त थी जिनके विषय मे कहा जाता है कि उन्हें इसी मंदिर प्रांगण में नारायण रुप मे सूर्य देव ने दर्शन दिया था।


संत कारुदास मंदिर (कोरमत्थू --

एक प्रसिद्ध कहावत है गया के राह कोरमत्थू। जी वही कोरमत्थु जहाँ जमुने किनारे भगवान राम ने गया जाते समय विश्राम किया था तथा एक शिवलिंग स्थापित की थी। वही शिवलिंग जिसकी खोज मे सिद्ध संप्रदाय के बाबा कारुदास हिमालय छोड कोरमत्थु के चैत्यवन आ पहुंचे। यहाँ प्राचीन शिवलिंग ठाकुरबाडी तथा कारूदास जी का मंदिर है। गया त्रिवेणी अखाडा से कोरमत्थु के लिए सीधी बस सेवा है । यहाँ से मंझार होते हुए बाबा कोटेश्वर नाथ धाम भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।


माँ तारा मंदिर,  केसपा ---



प्राचीन इतिहास मे मगध मे प्रमुख रूप से चैत्य वन तथा सिद्ध वन दो प्रमुख क्षेत्र थे। चैत्य वन मे मोरहर तथा पुनपुन का क्षेत्र केसपा कहा जाता था । पूर्व में माँ तारा के मंदिर के समीप से पुनपुन का प्रवाह था , तथा मंझार के पूर्व से मोरहर का । अर्थात मंझार से लेकर केसपा तक का संपूर्ण क्षेत्र केसपा के नाम से जाना जाता था। इस चैत्य वन के काश्यलपा क्षेत्र में मेन मंझार का क्षेत्र मंदार वन के नाम से जाना जाता था जहाँ कुचियानाथ का मठ था। कुचिया नाथ से भी बहुत पहले गया कश्यप नाम के बौद्ध संत का मठ था माँ तारा पीठ। बुचनन ने इसे बौद्ध - हिन्दु दोनो संप्रदायों का प्रमुख स्थान माना है।


दुर्लभ पीपल वृक्ष ( मेन-मंझार)------

कोटेश्वरनाथ मंदिर से ३०० मीटर उत्तर में दुर्लभ प्रजाति का पीपल वृक्ष है।दूर देश से वैज्ञानिक इस पर शोध करने आते हैं। श्रद्धालुओं के लिए यह कौतुक का विषय है क्योंकि वृक्ष की सभी शाखाएँ दक्षिण के तरफ उपर से नीचे आ जमीन को छूती हैं (मानो भगवान शिव को प्रणाम कर रही हों )फिर ऊपर जाती है।



माँ काली मंदिर(बेलागंज ---

गुप्तकालीन काली मंदिर मगध क्षेत्र मे शाक्त परंपरा का प्रमुख धरोहर है।


प्राचीन विष्णु मंदिर---

पाई बिगहा से २ किमी पश्चिम घेजन प्रमुख पुरातात्विक रुचि का केन्द्र है।यहाँ से प्राप्त भगवान् बुद्ध की २५० ई पू की भगवान् बुद्ध तथा भगवान विष्णु की प्रतिमा पटना संग्रहालय मे सुरक्षित है।यहाँ का मंदिर अति प्राचीन है, बेलगार ने इसे गुप्त कालीन बताया है।


कोचेश्वरनाथ --

कोच स्थित कोचेश्वरनाथ मठ अति प्राचीन शैव आस्था का केंद्र है।



खेतेश्वर महादेव ---

मेन मंझार शैव परंपरा का जागृत स्थान है जहाँ प्रतिवर्ष छोटे बडे एक या एक से अधिक शिवलिंग स्वयम् प्रकट हो ही जाते हैं।इस पूरे क्षेत्र में छोटे बडे १२७ शिवलिंग हैं जो स्वयं प्रकट हुए हैं , जिनमें ११ प्रमुख हैं। इन ११ में कोटेश्वरनाथ खेतेश्वर महादेव तथा गौरी शंकर तीन अति प्रमुख हैं। खेतेश्वर महादेव मोरहर नदी के उफान और बाढ मे भी नही डूबता जबकि ये न तो ऊँचाई पर स्थित है न हीं इनका आकार बहुत बडा है। आस पास के सभी ऊँचे टीले डूब जाते हैं पर उन सब से काफी कम ऊँचाई का यह स्वयंभू शिवलिंग कभी नही डूबता।


अक्षय  वट --




प्रसिद्ध अक्षय वट विष्णु पाद मंदिर के पास के क्षेत्र में स्थित है। अक्षय वट को सीता देवी ने अमर होने का वरदान दिया था और कभी भी किसी भी मौसम में इसके पत्तों को नहीं बहाया जाता है।








रामशिला पहाड़ी -- 

गया के दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित रामशिला हिल को सबसे पवित्र स्थान माना जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि भगवान राम ने पहाड़ी पर ’पिंडा’ की पेशकश की थी।पहाड़ी का नाम भगवान राम से जुड़ा है। प्राचीन काल से संबंधित कई पत्थर की मूर्तियां पहाड़ी के आसपास और आसपास के स्थानों पर देखी जा सकती हैं, जो कि बहुत पहले के समय से कुछ पूर्व संरचनाओं या मंदिरों के अस्तित्व का सुझाव देती हैं। पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर जिसे रामेश्वरा या पातालेश्वर मंदिर कहा जाता है, मूल रूप से 1014 A.D में बनाया गया था, लेकिन सफल अवधि में कई बहाली और मरम्मत से गुजरा।मंदिर के सामने हिंदू भक्तों द्वारा अपने पूर्वजों के लिए पितृपक्ष के दौरान "पिंड" चढ़ाया जाता है।


प्रेतशिला पहाडी--




रामशिला पहाड़ी से लगभग 10 किलोमीटर दूर है। पहाड़ी के नीचे ब्रह्म कुंड स्थित है।इस तालाब में स्नान करने के बाद लोग 'पिंड दान' के लिए जाते हैं।पहाड़ी की चोटी पर, इंदौर की रानी, अहिल्या बाई, ने 1787 में एक मंदिर बनाया था जिसे अहिल्या बाई मंदिर के नाम से जाना जाता था।यह मंदिर हमेशा अपनी अनूठी वास्तुकला और शानदार मूर्तियों के कारण पर्यटकों के लिए एक आकर्षण रहा है।






सीताकुंड--- 





विष्णु पद मंदिर के विपरीत तरफ, फल्गु नदी के दूसरे किनारे सीता कुंडपर स्थित है।उस स्थान को दर्शाते हुए एक छोटा सा मंदिर है जहाँ माता सीता ने अपने ससुर  राजा दशरथ के लिए पिंडदान किया था।


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