जहानाबाद जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल---

 जहानाबाद जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल---


जहानाबाद जिला क्षेत्र गुप्त और मौर्य साम्राज्य के समय से प्रसिद्ध रहा है।  मुग़ल काल के समय यहाँ  मुगलों का प्रभाव बढ़ा।  प्राचीन बिहार से मध्य युगीन बिहार के कुछ धार्मिक , सांस्कृतिक और ऐतिहासिक  पर्यटन स्थल यहाँ देखने लायक हैं।  

 गौरी -शंकर मंदिर ,भेलावर




--जहानाबाद रेलवे स्टेशन से दक्षिण- पूर्व में  लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर काको प्रखड मे भेलावर ग्राम स्थित है। यह भगवान शिव के पुराने मन्दिर के लिए प्रसिद्ध  है। गांव  के बाहर से ही आज भी मन्दिर परिसर  के पथरीले द्वार के बचे हुए अवशेष  को देखा जा सकता है। प्राचीन काल की कला के नमूने की खोज भी यहाँ की गई है। यहाँ प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर एक बङा मेला लगता है।














 केकई  स्थान काको----




जहानाबाद रेलवे स्टेशन के लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर जहानाबाद बिहार-शरीफ रोड मे स्थित काको प्रखड का मुख्यालय है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार  श्री रामचन्द्र के सौतेली माता  केकइ कुछ समय यहाँ वास ग्रहण की थी। उन्हीं के नाम पर इस ग्राम का नाम काको पङा। एक बहुत बङी मुस्लिम सूफिया हजरत बीबी कमाल साहिबा का मकबरा भी इस ग्राम में है। कहा जाता है कि बिहार-शरीफ के ह्जरत मखदुम साहब की यह चाची थी और रुहानी ताकत रखती थी। बिहार के कोने-कोने से बङी संख्या मे श्रधालु आते है और मनोकामना पाते है। ग्राम के उत्तर-पश्चिम में एक मन्दिर हैजिसमें सूर्य भगवान की एक बहुत पुरानी मूर्ति स्थापित है। प्रत्येक रविवार को बङी संख्या मे लोग पूजा करने के लिए आते है।


सिद्धेस्वर शिव मंदिर ,भैख ---




यह ग्राम मखदुमपुर प्रखड मुख्यालय से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यहाँ पहाडी की चोटी पर सिधेश्वरनाथ स्थान है।  भगवान शिव का पुराण मंदिर है।  करना चौपार और सुदामा नाम की दो गुफाएँ,  जिनका सम्बन्ध महाराजा अशोक से है। इस पहाङी पर है। कहा जाता है कि महाराजा अशोक ने इसके निकट ही एक झील बनवाई थीजिसे पटल-गंगा के नाम से पुकारा जाता है। चीनी यात्री हियुनसांग ने इस स्थान का दर्शन किया था और अपनी यात्रा पुस्तक मे इसका उल्लेख भी किया है।








घेजन --जहानाबाद में दक्षिण-पूर्व लगभग 19 किलोमीटर की दूरी पर कुर्था प्रखन्ड में स्थित एक प्राचीन ग्राम है। यहाँ एक पुराना गढ. है जहाँ गुप्त काल की पत्थर की मूर्तियाँ पाई गई है। इन मूर्तियो को पटना के अजायबघर में सुरक्षित रखा गया है।


आमथुआ ---यह जिला मुख्यालय से 7 कि0 मी0 पूर्व में है। मुगल काल में अमूल्य धरोहर जिसमें मुगल कालीन प्रमाण पर बना एवं सरकारी पथ पाए गए थे। जो फिलहाल पटना के खुदाबख्श लाइब्रेरी पुस्तकालय में मौजूद है। गाँव के दक्षिण मे शेरशाह की बनाई मस्जिद भी है। इसके अतिरिक्त यहाँ बहुतेरे महापुरुषों की कब्रें है जिनमें एक शेख चिस्ती की है।


ओकरी --यह जिला मुख्यालय से 18 कि0 मी0 उतर-पूर्व में फल्गु नदी के तट पर स्थित है। पूरा गाँव टिलहा पर बसा है। ओकरी परगना इसी गाँव के नाम पर है। इस परगना में फ्रांसिसी बुकानन के काल मे 132000 विगहा जमीन थी। कुछ जगहों पर खुदाई के दरम्यान कई मूर्तियों के साथ ब्राह्यीलिपि अभिलेख वाले 4 स्तम्भ भी प्राप्त हुए है ।


केउर --जिला मुख्यालय से 30 कि0 मी0 दक्षिण-पूर्व में बसे इस गाँव मे प्रसिद्ध इतिहासकार एवं पुरात्त्वविद ए0 बनर्जी ने 1939 ई0 में इस गाँव का निरीक्षण किया था। यहाँ एक बहुत बडा गढ. है। जिसकी ऊचाई 40 फीट है। इस गढ. की खुदाई के दरम्यान पाल काल के बहुत सारे मूर्तियाँ मिली है जो 10 वीं एवं 12 वीं सदी की है। खुदाई के क्रम में  यहाँ बडी- बडी ईटें प्राप्त हुई है। जिसकी लं0 14 इंच चौडाई 8 1/2 इंच एवं ऊचाई 3 इंच है।

इतिहासकार शास्त्री ने इस गाँव की तुलना नालन्दा से करते हुए कहा था लगता है कि यह पाल कालीन बौद्ध विश्वविद्यालय विक्रमशीला यही अवस्थित है।


बराबर की पहाड़ी ---
















दाउदपुर ---यह गाँव जिला मुख्यालय से 28  कि0 मी0 पूर्व

 में स्थित है। इस गाँव का निरिक्षण फ्रासिसी बुकान्न ने 1811-12 ई0 में तथा ब्राडले ने 1872 में किया था। इनलोगों ने अपने प्रतिवेदन मे बताया है कि इस गाँव का पूर्व में नाम देवस्तिदेव्स्थु,  दप्थुदाउथु था। यहाँ मिट्टी का गढ. भी है तथा गढ. के दक्षिण-पूर्व में मुस्लिम संत का मजार है। मजार के दक्षिण-पूर्व में एक विशाल मन्दिर पारसनाथ के नाम से ख्याति प्राप्त है जिसे बौद्ध मन्दिर भी माना जाता है। इस मन्दिर के दक्षिण में वासुदेव,  लक्ष्मीनारायण जगदम्बा नृत्य मुद्रा में पार्वती- शिव की मूर्तियाँ है। ये बातें फ्रांसिसी यात्री बुकानन के द्वारा लिखी गयी थी। लेकिन आज की स्थिति में वहाँ सिर्फ अवशेष मिलेगे। वहाँ की कुछ मूर्तियाँ गया संग्रहालय में उपलब्ध है।


लाट -----यह जिला मुख्यालय से करीब 35 कि0 मी0 पूर्व-दक्षिण के कोण पर स्थित है। यहाँ एक गोलाकार लम्बा स्तम्भ है जिसकी लम्बाई 53.5 फीट गोलाई 3.5 फीट व्यास की है। यह उतर से दक्षिण की ओर आधी जमीन में तथा आधी जमीन की सतह पर है। इसके बारे मे कई तरह की क्रिबद्नंतियाँ है। लेकिन हाल मे कुछ पुरातत्वविदो ने इस मरहौली लौह स्तम्भ का साँचा बताया है।


बराबर गुफा ---- 







जारु--- जिला मुख्यालय से करीब 40 कि0 मी0 पूर्व- दक्षिण के कोण पर है। यहाँ एक प्राचीन मन्दिर का अवशेष मिला है जो स्थात्व कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। स्थानीय लोग इसे शेरशाह के काल का बताते है। बगल में स्थित पर्वत पर एक बहुत बङा शिवलिंग है। इसे हरिहर नाथ के नाम से जाना जाता है। यहाँ मेला भी लगता है।


धराउत--- जिला मुख्यालय से करीब 22 कि0 मी0 दक्षिण तथा बराबर पहाङी से 05 कि0 मी0 उतर- पूर्व मे स्थित है। यहाँ एक विशाल बौद्ध मठ चीनी यात्री व्हेन-सांग के काल में था। चीनी यात्री व्हेन-सांग ठहरे भी थे। जिसका उल्लेख उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में किया है। इस गाँव के ऎतिहासिक एवं पुरातत्व विभाग को देखते हुए कई पुरातत्वविदो ने विभिन्न समयों में यहाँ का निरीक्षण किया है। जिनमे मेजर किट्टी ने 1847 ई0 कलिंघम ने 1862 ई0 और 1880 ई0 में बेलगार ने 1892 ई0डा0 गिरियेसेन ने 1900 ई0,  डा0 हरिकिशोर ने 1954 में इसका निरीक्षण कियाइस गाँव का पूर्व में कई नाम थे जिनमे धरमपुरकंचनपुरधरमपुरीधरमावर आदि प्रमुख है। यहाँ की`` बहुत सारी मुर्तियाँ पटना संग्रहालय मे उपलब्ध है। इस गाँव की विगत बहुत सारी टिल्हे एवं गढ. है। यदि जिसकी खुदाई की जाए तो इस गाँव में और भी ऎतिहासिक तथ्य सामने आयेगी।




बराबर  पहाड़ी मंदिर-----

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