सारण जिले के पर्यटन स्थल --

 

सारण  जिले के पर्यटन स्थल --


सारण  जिला क्षेत्र  अति प्राचीन है एवं धार्मिक है।  पर्यटन के लिहाज से यहाँ बहुत से धार्मिक स्थल है जिनका सम्बंद पौराणिक  काल से है।  उनमे से कुछ प्रमुख हैं: 


 अम्बिका भवानी ,आमी




यह जगह छपरा से 37 किमी पूर्व और दिघवारा के 4 किमी पश्चिम में स्थित है। आज के दिघवारा के आमी में अम्बिका भवानी का शक्ति स्थल है।   सारण क्षेत्र में दिघवारा एक प्रखंड है।  आज का दिघवारा प्राचीन काल का दीघ - द्वार है यह दक्ष प्रजापति के  राज्य का प्रवेश   द्वार था।  उस समय इस नगर का नाम  दिघ - द्वार था , जो कालांतर में दिघवारा हो गया।  माता सती  और  महादेव की कहानी शिव पुराण में वर्णित है। आदि शक्ति की पूजा में एक समान त्रिभुज का उतना ही महत्व है जितना कि भगवान विष्णु के लिए सालिग्राम और भगवान शिव के लिए शिव लिंग का। त्रिभुज के केंद्र को  अम्बिका कहा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से तीन शिव मंदिरों (बैद्यनाथ, विश्वनाथ और पशुपतिनाथ) की दूरी यहा से समान है। और यदि हम तीन शिव मंदिर को जोड़ने वाली एक काल्पनिक रेखा खींचते हैं तो यह केंद्र में अम्बिका अष्टम अमावस्या के साथ एक समभुज त्रिकोण होगा।  यहां गंगा शिव रूप में लिंगाकार है। गंडक व सोन का संगम रहा आमी लिंगाकार शिव एवं अंडाकार शक्ति रूप में है। नौ दुर्गा की नौ पिण्डियों के साथ एकादश रूद्र यहां स्थापित हैं।   यह सिद्धपीठ अम्बिका स्थल गंगा, सोन एवं नारायणी का संगम था। भौगोलिक परिवर्तन स्वरूप दो नदियों की धारा बदल गयी। 



 हरिहर नाथ क्षेत्र ,सोनपुर





सोनपुर में  हरिहरनाथ क्षेत्र  हैं।  यहां प्राचीन हरिहर नाथ का मंदिर है। प्राचीन काल में इसी नदी में गज को ग्राह  ने पकड़ किया था।  दोनों में बहुत दिनों तक युद्ध  चला। 





अंत में गज ने भगवन विष्णु की प्रार्थना की , भगवन विष्णु आये  और अपने सुदर्शन चक्र से ग्राह  को मारकर  गज की रक्षा की।  तब से यह स्थान हरिहर क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हो  गया।  आज भी वहां नदी के किनारे  हरिहर नाथ का मंदिर है।  




 

सोनपुर मेला ----- 




सोनपुर का यह मेला प्रत्येक साल कार्तिक पूर्णिमा को लगता है और

पुरे  एक महीने तक चलता है।  यह विश्व प्रसिद्ध मेला है।  यहाँ  पर दुनिया का सबसे

 बड़ा पशु मेला भी लगता है। ऐतिहासिक रूप से, इस मेले की शुरुआत  मगध सम्राट 

 चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल  में शुरू हुई थी ।  उस मई यहाँ पर घोड़े और हाथियों

 का मेला लगता था और  मगध साम्राज्य के लोग गंगा पार  से हाथी और घोड़े खरीदने

 के लिए आते  थे।  उस समय यह मेला आज के हाजीपुर इलाके में लगता था। 





 मुगलो

 ने भारतीय संस्कृति को काफी नुकसान पहुंचाया।  औरंगजेब के शासन काल में इस

 मेले का स्थान बदल कर सोनपुर कर दिया गया तब से यह मेला यहीं लगता है।

 

ढोढ  स्थान आश्रम

यह स्थान पारसा गढ़ के उत्तर में स्थित है जहां पुरातात्विक महत्व के कई प्रदर्शन देखा

 जा सकता है। गंडक नदी के किनारे पर और भगवान धनेश्वर नाथ के प्राचीन मंदिर

 में स्थित है जिसमें एक विशाल शिवलिंग  है। 




गौतम  ऋषि आश्रम




गौतम ऋषि के आश्रम छपरा से 5 किमी पश्चिम में स्थित है। धार्मिक विश्वास के

 अनुसार, अहिल्या की शुद्धि यहां पर हुई थी। महाकाव्य रामायण में, गौतम ऋषि का

 उल्लेख है जिन्होंने अपनी पत्नी को शाप दिया था जो पत्थर में बदल गया था।




सिलहौरि



 

यह शिव पुराण और राम चरित्र मानस के बाल एपिसोड के अनुसार एक महत्वपूर्ण

 स्थान है। नारद के मोह भन इस स्थान को यहां दर्शाते हैं। यह प्राचीन जगह मढ़ौरा से

 28 किमी दूर है। प्रत्येक शिवरात्रि मेला में यहां आयोजित किया जाता है, जिसके

 दौरान बाबा शिलानाथ के देवता उनके आभारों का भुगतान करने के लिए आते हैं।देवर्षि नारद को अपनी तपस्या पर अहंकार हो गया। उनके अभिमान भंग करने के लिए भगवान विष्णु की माया से बसे नगर में राजा शिलनिधि की पुत्री विश्वमोहिनी का स्वयंवर रचा गया था। विश्वमोहिनी के हस्तरेखा के अनुसार उसका वर तीनों लोक का स्वामी होगा। उसके सौंदर्य व तीनों लोक के स्वामी होने की बात से देवर्षि नारद विचलित हो गए। उन्होंने उसमें शामिल होने का मन बना लिया। विष्णु से हरि रूप यानि भगवान के आकर्षक मुखमंडल की मांग की। इसके बाद स्वयंवर में शामिल होने गए। लेकिन वहां तिरस्कृत हो गए। तब कुएं में झांक कर देखा। वे अपनी शक्ल वानर जैसी देखकर कुपित हो 



चिरांद




चिरांद घाघरा नदी के उत्तर तट पर डोरीगंज बाजार के पास जिला मुख्यालय के 11

 किमी दक्षिण पूर्व में स्थित है। खुदाई का नतीजा पाषाण युग की लगभग चार हजार

 साल पुरानी विकसित संस्कृति का पता चलता है।

चिरांद जिला मुख्यालय से 11 किमी दक्षिण पूर्व में घाघरा नदी के उत्तरी तट पर दोरीगंज बाजार के पास स्थित है। उत्खनन के परिणाम से पाशन युग की लगभग चार हज़ार वर्ष पुरानी विकसित संस्कृति का पता चलता है। चिरांद के निरीक्षक पशुपालन, कृषि और शिकार में लगे थे। पूरे भारत में पहली बार नई पाषाण काल की संस्कृति का पता चला। चिरांद एक महत्वपूर्ण शहरी स्थान बन गया था।

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