गोपालगंज जिले के पर्यटन स्थल ---

 गोपालगंज जिले के पर्यटन स्थल ---


गोपालगंज जिले में थावे की अम्बिका भवानी  एक शक्ति पीठ है।  इसके अलावा अन्य कई महत्वपूर्ण स्थल भी हैं। 


थावे भवानी मंदिर,गोपालगंज  



 थावे भवानी मंदिर एक जागृत  शक्ति पीठ है । अति प्राचीन यह मंदिर है।  कहा  जाता है की तीन सौ  साल से यहाँ भवानी माता जागृत  अवस्था में हैं। यहाँ आने वाले हर भक्त  की  मनोकामना पूरी होती है। 
यह मंदिर  सुन्दर  एवं घने  वन से घिरा  है ।    



गोपालगंज शहर से महज 6  किलोमीटर दूर गोपालगंज सिवान मुख्य मगर पर अवस्थित इस अम्बिका भवानी मंदिर में सैलून भर श्रद्धुलों  की भीड़ लगी रहती है।   


इस मंदिर और माँ  भवानी से जुडी हुई एक अद्भुत कहानी  है।   यही थावे में  रहसु नाम का एक माता भक्त  रहता था।  
वह  जंगल से घास फुस  लेकर आता   और अपने घर के सामने रख देता  फिर।  फिर जंगल से शेर और बाघ को पकड़ कर लता था।  फिर  उनको लते   वाली झाली से बांध कर उस घास पर घूमता था।   शेर बाघ जैसे  हिंसक जानवर  बैल की तरह उसका  दावनी  का काम करते।   जानवरो के जाने के बाद रहसु  घास को    हटाता था  और वह से   धन और चावल  निकलता था।   यह बात पुरे यज्य में फ़ैल गई।   रहसु बिना खेती किये धन और गेहूँ  निकलता है और वो भी जंगली घास से।

   


उस समय  वहां  हथुआ के राजा मनन सिंह थे।   ऐसा कहा जाता है की मनन सिंह चेर वंश के शाषक  थे।   राजा को इस बात की  खबर लगी तो उन्होंने  रहसु को बुलाया और  घास से अन्न  निकलने का राज पूछा।  रहसु  ने कहा की  यह सब  अम्बे  भवानी की कृपा है।   राजा मुर्ख था।  उसने कहा - मैं  तुम्हारे   भवानी  को  देखना चाहता हूँ।    रहसु ने राजा से बहुत प्रार्थना की लेकिन राजा ज़िद पर अड़ा  रहा।  अंत में रहसु ने भवानी को याद किया।  माता  कामाख्या  मंदिर से चली  और पटना पटनदेवी पहुंची।  रहसु ने  कहा माता पटना आई है।  अभी भी वक़्त है  उनको लौटा देते हैं।  राजा ने कहा मुझे देखना है।   रहसु ने फिर माता को याद किया।   माता  आमी  अम्बिका  भवानी मंदिर पहुंच गई।  रहसु ने अंतिम बार  चेताया  और कहा माता के आने से  तुम्हारा सर्वनाश हो जायेगा।   राजा और क्रोधित हो  गया।   रहसु ने माता को बुलाया  और माता भवानी आ गई। भक्त  रहसु  का मस्तक फटा और माता का हाथ बहार आया।  देवी के कंगन वाले  



हाथ का दर्शन करते ही राजा  मनन सिंह की मृत्यु हो। गई   राजा मनन सिंह  का महल खंडहर  हो  गया।   सब कुछ नष्ट हो  गया।   तब से लेकर आज तक  देवी का जाग्रत  अवस्था में यहीं वास् है।  


श्री पीताम्बरा पीठ (माँ बंगलामुखी) ---




श्री पीताम्बरा पीठ, प्रसिद्ध शक्ति पीठों में से एक है और यह जिला मुख्यालय से 15

कि0 मी0 दूरी पर कुचायकोट में अवस्थित है। हिन्दू धर्म अनुसार बंगलामुखी दस

 महाविद्याओं (महान ज्ञान) में से एक हैं। बंगलामुखी देवी भक्त की गलतफहमी और

 भ्रम को अपनी गदा से दूर कर देती हैं। इस नाम का शाब्दिक अर्थ वग्ला स्वरुप होता

 है। बंगला संस्कृत के ‘वग्ला’ शब्द का विरूपण है। माँ बंगलामुखी का स्वरुप सुनहरे

 रंग का एवं कपड़े का रंग पीला होता है। माँ बंगलामुखी पीला कमल से भरा अमृत के

 महासागर के बीच में एक सुनहरा सिंहासन पर विराजमान होती हैं। एक अर्ध चंद्र

 उनके माथे को सुशोभित करता है।

देवी को विभिन्न ग्रंथों में दो अलग-अलग तरीकों से वर्णित किया गया है- `द्वि-भुज'(दो

 हाथ) और ‘चतुर्भुज'(चार हाथ)। माता का द्वि-भुज स्वरुप अधिक प्रचलित है और इसे

 ‘सौम्य’ स्वरुप के तौर पर वर्णित किया गया है। माता अपने बाएं हाथ से राक्षस के

 जिह्वा को खींचती है एवं दाहिने हाथ से राक्षस पर गदा से वार करती हैं। माता का यह

 शक्ति स्वरुप दुश्मन को स्तब्ध करने वाला है एवं वास्तव में एक वरदान है जिसके

 लिए भक्त उनकी पूजा करते हैं।



दिघवा – दुबौली:

गोपालगंज अनुमंडल के पूर्वी छोर पर जिला मुख्यालय से दक्षिण – पूर्व दिशा में 40

कि0 मी0 की दूरी पर एवं छपरा से उत्तर दिशा में 56 कि0 मी0 की दूरी पर यह गांव

 अवस्थित है। यह उत्तर-पूर्वी रेलवे के छपरा-मशरक खंड का एक रेलवे स्टेशन भी है।

 यह एक प्राचीन स्थल है और यहां दो असाधारण पिरामिड-आकार के ढांचे पाए जाते

 हैं। ये दो ढांचे गांव के दक्षिण-पूर्व के करीब स्थित हैं, और एक दूसरे के पूर्व और

 पश्चिम में स्थित हैं। पश्चिमी ढांचा लगभग गांव के दक्षिण पूर्वी छोर के आसपास स्थित है

 और पूर्वी ढांचा दूसरे ढांचे के दक्षिण-पूर्व में 640 फीट की दूरी पर स्थित है और सड़क

 के नजदीक है। इनमें से प्रत्येक ढांचा पिरामिड आकार का है एवं इनका आधार चारो

 कोनों में फैला है। देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि एक शंकु को केंद्र में रखा गया है।

 ये ढांचे मिट्टी के बने लगते हैं, लेकिन ईंट और मिट्टी के बर्तनों के छोटे टुकड़ों का

 मिश्रण भी इनमें पाया जाता है। पूर्वी ढांचा के दक्षिण में 950 फीट की दूरी पर माध्यम

ऊँचाई का एक गोलाकार ढांचा जिसका क्षैतिज व्यास लगभग 200 फीट है। यहाँ एक

 पुराना कुआँ है। गांव के उत्तर में सड़क के पार ढांचा का एक हिस्सा है जो इस ढांचे

 के बड़े समतल भाग से सड़क द्वारा कटा हुआ दिखाई देता है एवं इसी पर दिघा

दुबौली ग्राम अवस्थित है। ये ढांचे चेरो-चाई के काम हैं। चेरो एक आदिवासी जाति है

 जो एक बार देश के इस हिस्से में शक्तिशाली होते थे, लेकिन अब गंगा के दक्षिण में

 पहाड़ियों में निवास करते हैं।


माझा गढ़ किला एवं गोपाल मंदिर----- यह प्राचीन किला  माझा ब्लॉक में है। 

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