सीतामढ़ी जिले के पर्यटन स्थल ------

 सीतामढ़ी जिले के पर्यटन स्थल  ------ 


सीतामढ़ी एक प्राचीन धार्मिक स्थल है।  इस पवित्र भूमि का सम्बन्ध रामायण काल से है।  यही जनक नंदनी सीता का जन्म हुआ था।  यहाँ अनेक धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्यटन स्थल हैं। 


जानकी मंदिर----  




 






 महाराज जनक की पुत्री सीता जिसे जानकी के नाम से भी जाना जाता है , इन्ही के नाम से  जानकी मंदिर है।  सीतामढ़ी  में जानकी मंदिर है सीतामढ़ी  का नाम भी जनक नंदनी सीता के नाम पर  रखा गया है।  बात त्रेता युग है।  यह कथा वाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में बताई गई है।   
सीतामढी रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस पवित्र भूमि पर  जानकी मंदिर बना हुआ है।  इस मंदिर में  में  भगवान श्रीराम, देवी सीता और लक्ष्मण की मूर्तियाँ  स्थापित की गई  है।  यह मंदिर  नगर के पश्चिमी छोर पर स्थित है।  सीतामढ़ी जानकी मंदिर के नाम से विख्यात यह मंदिर अत्यंत ही पवित्र एवं विशेष आस्था का केंद्र है। 



बाबा परिहार ठाकुुुर मंदिर - --- 



यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है।  सीतामढ़ी जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर परिहार  प्रखंड   में स्थित है बाबा परिहार ठाकुर का मंदिर।  यहां की मान्यता है कि जो भी बाबा परिहार ठाकुर के मंदिर में आता है वह खाली हाथ वापस नहीं लौटता ।


उर्वीजा कुंड   ----


















सीतामढ़ी शहर  के पश्चिमी इलाके में  उर्बीजा कुंड है। सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थल अत्यंत  पवित्र है।  कहा जाता है कि आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व इस  कुंड के जीर्णोद्धार के समय, इसके  अंदर उर्बीजा (सीता)  की एक प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जिसकी स्थापना जानकी स्थान के मंदिर में की गयी। कुछ लोगों का कहना है कि वर्तमान जानकी -स्थान के मंदिर में स्थापित जानकी जी की मूर्ति वही है, जो कुंड की खुदाई के समय उसके अंदर से निकली थी।





पुनौरा धाम-  जानकी कुंड------
















 



यह स्थान पौराणिक काल में पुंडरीक ऋषि के आश्रम के रूप में विख्यात था। कुछ लोगों का यह भी मत है कि सीतामढ़ी से ५ किलोमीटर पश्चिम स्थित पुनौरा में हीं देवी सीता का जन्म हुआ था। मिथिला नरेश जनक  ने इंद्र  देव को खुश करने के लिए अपने हाथों से यहाँ हल चलाया था। इसी दौरान एक मृदपात्र में देवी सीता बालिका रूप में उन्हें मिली।  जानकी स्थान मंदिर के अलावे यहाँ पवित्र कुंड है।





हलेश्वर स्थान---
















सीतामढी से ३ किलोमीटर उत्तर पूर्व दिशा में स्थित  इस स्थान पर राजा जनक  ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था। यह भी कहा जाता है कि  यह वही स्थान हैं जहा  राजा जनक ने हल चलाया था।   बाद में यहीं पर   भगवान शिव  का मंदिर बनवाया।  जो हलेश्वर स्थान के नाम से प्रसिद्ध है।



पंथपाकड़ ----- 















यह एक प्रसिद्ध पाकड़  का पेड़ है।  सीतामढी से ८ किलोमीटर उत्तर-पश्चिम  दिशा में स्थित यह एक  बहुत पुराना पाकड़ का एक पेड़ है जिसे त्रेतायुग   का माना जाता है। मान्यता है कि देवी सीता को जनकपुर  से अयोध्या ले जाने के समय उन्हें पालकी से उतार कर इस वृक्ष के नीचे कुछ्ह समय के लिए यहीं  विश्राम कराया गया था। 





बगही मठ--



















सीतामढी से ७ किलोमीटर उत्तर पश्चिम की दिशा  में स्थित बगही मठ एक प्रसिद्ध और पवित्र मठ   है।  इस मठ  में १०८ कमरे बने हैं। पूजा तथा यज्ञ के लिए इस स्थान की बहुत प्रसिद्धि है।


देवकुली (ढेकुली) धाम ---















सी मान्यता है कि यह राज्य महाभारत काल के राजा द्रुपद का था  और यहाँ  पांडवों की पत्नी द्रौपदी  का यहाँ जन्म हुआ था। सीतामढी से १९ किलोमीटर पश्चिम दिशा में  स्थित ढेकुली में अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर है जहाँ महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है।



जनकपुर धाम -- 















आज के समय में जनक पुर धाम आज के नेपाल में है।  जो त्रेता युग में राजा जनक का राज्य था। भारत - नेपाल  सीतामढी से लगभग ३५ किलोमीटर पूर्व में   भारत-नेपाल सीमा पर भिट्ठा मोड़ जाकर नेपाल के जनकपुर जाया जा सकता है। सीमा खुली है तथा यातायात की अच्छी सुविधा है इसलिए राजा जनक की नगरी तक यात्रा करने में कोई परेशानी नहीं है। यह वहु भूमि है जहां राजा जनक के द्वारा आयोजित स्वयंबर में शिव के धनुष को तोड़कर भगवान राम ने माता सीता के साथ विवाह रचाया था। 




बोधायन सर ---

संस्कृत  वैयाकरण पाणिनी  के गुरू महर्षि बोधायन  ने इस स्थान पर कई काव्यों की रचना की थी। लगभग ४० वर्ष पूर्व देवरहा बाबा  ने यहाँ बोधायन मंदिर की आधारशिला रखी थी।


शुकेश्वर स्थान---- 



















एक पर मुनि सुक  ने महादेव की घोर तपस्या की थी। यही शिवलिंग की स्थापना की थी।  यहाँ पर महादेव को सुकेश्वर महादेव के नाम से  जाना जाता है।  

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